होरी आई

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डॉ. वसुन्धरा मिश्र

होरी आई होरी आई
कान्हा की बाँसुरिया
हौले से बोली
होरी आई होरी आई
कान्हा की बाँसुरिया
हौले से बोली

राधा – रानी तू है हठीली
बईयां धर मोरी बोली
मैं तो ना डारूंगी रंग तो पै
हाथों में ले पिचकारी
उंगली की ओट से
देखूंँगी तोहे
होठों पे कटीली हंँसी छाई
होरी आई होरीआई

 

कान्हा मोहे कस कर पकड़े
अंँखियों से अंँखियांँ मारे
हंँस- हंँस के बाँसुरिया बोली
ग्वाल – बाल सब गैल पडे़ हैं
कान्हा गाए होरी
रंग-रास की मुठिया मारे
राधा रानी तू गर्वीली
बांँसुरी बन मैं हुई बावरी
करती अब मनुहार तिहारी
क्षमा चाहती राधा रानी
तू तो है कान्हा की जोड़ी
बाँसुरिया तुझमें ही खोई

होरी आई होरी आई
कान्हा की बाँसुरिया
हौले से बोली

जमुना के तट पे रास – रचईया
आओ हिलमिल खेलें होरी
राधा नाचे, बाँसुरी गावे
कान्हा की पैजनिया छम-छम
दौड़- दौड़ कर आए लोग- लुगाई
जमुना में भी आई लाली
होरी आई रे कन्हाई

होरी आई होरी आई
कान्हा की बाँसुरिया
हौले से बोली
होरी आई होरी आई

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