होली आई

शशांक सिंह

हवा में मस्ती छाई!
हो! देखो होली आई!
रंग का क्या नशा चढ़ा
शत्रु भी हो गए भाई

हाथों में ले पिचकारी,
खिलखिला बच्चे दौड़े!
बड़े हैं गले लगाए,
स्वजन हो गए, पराए।

द्वेष की जले होलिका,
प्रेम की फूले मल्लिका!
पुराने मनमुटाव को,
भुलाने होली आई!

न रहो मुँह लटकाए,
नहीं है मातम छाए।
उठो, पकड़ो पिचकारी;
हो! देखो होली आई|

किन्तु मज़हब का चोला,
इसे तुम नही ओढ़ाओ;
जो बाटें इन रंगों को,
ना ऐसा पाठ पढ़ाओ!

हवा में मस्ती छाई!
हो! देखो होली आई!
रंग का क्या नशा चढ़ा
शत्रु भी हो गए भाई |

 

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