एही बनवा में बरसै अंगार हिरना।

कैलाश गौतम
चला चलीं कहीं बनवा के पार हिरना
एही बनवा में बरसै अंगार हिरना।
रेत भइलीं नदिया, पठार भइलीं धरती
जरि गइलीं बगिया, उपर भइलीं परती
एही अगिया में दहकै कछार हिरना।
चला चलीं कहीं बनवा के पार हिरना
एही बनवा में बरसै अंगार हिरना।
निंदिया क महंगी सपनवा क चोरी
एही पार धनिया, त ओहि पार होरी
बिचवां में उठलीं दीवार हिरना।
चला चलीं कहीं बनवा के पार हिरना
एही बनवा में बरसै अंगार हिरना।
बड़ी-बड़ी बखरी क बड़ी-बड़ी कहनी
केहू धोवै सोरिया, त केहू तौरै टहनी
केहू बीछै हरी-हरी डार हिरना।
चला चलीं कहीं बनवा के पार हिरना
एही बनवा में बरसै अंगार हिरना।
गीतिया ना महकी, ना फुलिहैं कजरवा
लुटि जइहैं लजिया, न अंटिहैं अंचरवा
बिकि जइहैं सोरहो सिंगार हिरना।
चला चलीं कहीं बनवा के पार हिरना
एही बनवा में बरसै अंगार हिरना।

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