कहीं मानवता शर्मसार तो नहीं?

– डॉ वसुंधरा मिश्र
 कोरोना वायरस की गति को लेकर बहुत से सवाल उठ रहे हैं जो पूरे विश्व को आतंकित कर रहे हैं। कुछ देश तो तृतीय स्तर में संक्रमित हो रहे हैं और प्रति दिन के हिसाब से वहां मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है। इटली, स्पेन और अब अमरीका में आंकड़े बढ़ रहे हैं। भारत अभी तो नियंत्रण में है, कहीं उस ओर चला गया तो इस महामारी से होने वाली तबाही को रोकना बेकाबू हो जाएगा। आज हम कोरोना वायरस के पंजों की गिरफ़्त में हैं जो अदृश्य रूप से मानवता को कुचलने में लगने लगी है। बड़े बड़े देशों में कोरोना वायरस ने खलबली मचा दी है। क्या यह एकछत्र सत्ता प्राप्त करने के लिए किसी का खतरनाक खेल तो नहीं? इस वायरस को कहीं से भेजा तो नहीं गया है? और यदि ऐसा नहीं है तो पूरे विश्व में इस वायरस का प्रकोप कहीं अधिक और कहीं कम क्यों है ? साइबेरिया के पक्षियों की तरह क्या इस वायरस को स्थान विशेष के मार्ग का ज्ञान है? आधुनिक काल ने मनुष्य की अस्मिता को पहचानने में अपनी महती भूमिका निभाई थी। व्यक्ति महत्वकांक्षी और मैं यानि अहम् पर केन्द्रित होता चला गया। चरित्र आदर्श और मूल्यों का स्खलन होता चला गया। हम मनुष्य के नैसर्गिक प्रकृति को भुलाने लगे और भारतीय संस्कृति और मूल्यों से खिलवाड़ करने लगे।
आज हम उत्तर आधुनिक युग में जी रहे हैं जहाँ मनुष्यता के नाम पर संवेदना को परोसे जाने का उत्पाद आरंभ होने लगा है।यह बाजारवाद का बहुत बड़ा सिद्धांत तो नहीं है? चाहे प्राकृतिक आपदा हो या राजनीतिक सत्ताधारियों की आपसी लड़ाई हो,  आम आदमी आशंकाओं के बीच ही फंसे रहते हैं।वे त्रिशंकु की तरह बीच में लटकने को बाध्य होते हैं। सरकार और मीडिया बेचारी का भला हो, निष्पक्षता के साथ अपनी अपनी भूमिकाएं निभाते हुए उन्हें भी खबरदार रहना पड़ता है। भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है। ऐसे सरकार के पास आर्थिक मंदी नहीं है लेकिन जब आम लोगों को आपदाओं से उबरने के लिए सहायता राशि देने का समय आता है तो सरकार देश के लोगों से ही वसूल करती है। यह लोकतंत्र की खिल्ली उड़ाता दिखाई पड़ता है। समय पर आम जनता की छोटी-छोटी अनिवार्य आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पातीं। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का ईनाम है। जनता को पिसना पड़ता है। वर्तमान समय में कोविद 19महामारी को संभालना अब भारी लगने लगा है। अचानक ऐसी अदृश्य आपदाओं का प्रकोप होने पर सरकार, प्रशासन और संबंधित विभाग अपने को  व्यक्त करने का तरीका भी बदल देते हैं। जनता को उन्हीं की मानसिकता में संवेदना के औजारों द्वारा सेट किया जाता है। वही दिखाया जाता है जो वे देखना चाहते हैं। बिना किसी पूर्व सुरक्षा और सुविधाओं के घर बंद कर बहुत अच्छा कदम उठाया जिसकी सराहना तो पूरे विश्व में हो रही है। भारत भी उससे अपने तरीके से लड़ रहा है। यह महामारी तृतीय विश्व युद्ध के रूप में उभर कर आई है। इसके भयंकर परिणामों को भी जनता को ही झेलना पड़ेगा।
कोविद – 19 की गतिशीलता एक ऐसे योद्धा की चाल है जो दिखाई नहीं दे रही और अपना काम तमाम करती जा रही है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सरकार सभी अपनी बेबसी पर हैरान हैं। यह वायरस पूरी दुनिया के 190 से अधिक देशों को आक्रांत कर चुका है। जहाँ जहाँ गया वहाँ वहाँ उसने अपना संपर्क बनाया और लोगों को गुणात्मक संख्या में लपेटने लगा। कुछ खास लोगों तक गया फिर वहाँ से दूसरों तक चेन बनाता चला गया। जहाँ से शुरू हुआ वहाँ तो सामान्य जीवन भी शुरू हो गया। लोगों में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है। चीन के प्रमुख शहरों में कोरोना वायरस का न फैलना कहीं कोई साजिश के तहत तो नहीं है। मानवता को अपनी मुट्ठी में रखने के स्वप्न को पूरा करने के लिए कहीं विश्व को ठगा तो नहीं जा रहा है। लोगों का मनुष्यता पर से ही विश्वास न उठता जा रहा है। यह वायरस कहीं मानव संवेदना और संस्कृति पर प्रहार तो नहीं है?  सत्ता हथियाने का दम वही देश भर सकता है  जिसके पास ताकत और अर्थतंत्र मजबूत हो।प्रतिस्पर्द्धा में वही शक्ति विजयी होती है जो मानवता की सेवा में अपने को लगाती है क्योंकि मानवीय संवेदनाओं से ही सत्ता विजयी होती है अन्यथा उसका भी विनाश होता हैऔर उसकी जगह फिर कोई दूसरा नायक जन्म लेता है। दुनिया के इतिहास में ऐसे अनेक पृष्ठ हैं जहाँ मानवता को कुचलकर अपना झंडा फहराया गया है। आधुनिक युग ने हमें जो दिया, उत्तर आधुनिकता हमसे छीन रही है। यह संकेत संकटों का है। हमारी संवेदना को खतरा है। मनुष्यता के नाम पर संवेदना का गला घोटा जा रहा है। मेरी पंक्तियां याद आ रही हैं – – संवेदनाओं को धागों में पिरोने के बीच /न जाने टूट जाती हैं कितनी ही कड़ियाँ /मैंने उसे पुचकारा /कोमल स्पर्श को फेरा /उसने हल्की- सी ली करवट /और फिर वह गया बदल – – – उसकी कुर्बानी को /भुनाने लगी रिश्तों में / मेरा शौक बढ़ता चला गया/ और मैं /अपने तानों – बानों को लगी इच्छानुसार मरोड़ने /खेलने लगी तंतुओं की नरमाई से (हर दिन नया(काव्य संग्रह) ,  ताने-बाने, पृष्ठ 28-29)
अभी तो जीने की आशा है।विश्व के बड़े-बड़े देश कोरोना वायरस से जूझ रहे हैं। कितने ही डॉक्टर और नर्स भी उसकी चपेट में आ गए हैं। हजारों की संख्या में लोग मर रहे हैं। इस भयावह स्थिति में हम घर में ही रहें तो अधिक सुरक्षित रह सकते हैं।  कोरोना वायरस से बचने की रामबाण औषधि घर में रहना है। मानवता को बचाना है तो भीतर ही रहें।

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