क्वांटम चेतना और सत्य का अस्तित्व

डॉ. राखी रॉय हल्दर

rakhi di

आध्यात्मिक चेतना और विज्ञान के परस्पर विरोधी होने की धारणा को चुनौती देती हुई आज क्वांटम-चेतना की अवधारणा सामने आ गई है। मानव शरीर एक पदार्थ है जिसमें क्वांटम कण जटिल प्रक्रिया के तहत पैदा होते हैं और चेतना या विचार के रूप में महसूस किए जाते हैं। चेतना या विचार के जन्म की प्रक्रिया शरीर, दिमाग और क्वांटम कण से सम्बद्ध होने के कारण पदार्थ विज्ञान और जैविक विज्ञान के दायरे को एक साथ स्पर्श करती है। क्लासिकल पदार्थ विज्ञान में दिमाग को समानांतर स्थित कम्प्यूटरों की एक वृहद व्यवस्था के समान माना गया है। जिसका एक-एक बिंदु सूक्ष्म सूत्रों के जरिए स्पेस और समय के बिन्दुओं से जुड़ा हुआ है। क्लासिकल पदार्थ विज्ञान की सीमा तब दृष्टिगोचर होती है जब हम विश्वासों और संस्कारों को जन्म देने में विचार और दिमाग के पारस्परिक सम्बंध को समझने की कोशिश करते हैं। यहीं क्वांटम सिद्धांत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

इस बात का एहसास होना कि भौतिक जगत के पदार्थ सृष्टि, विकास और विनाश की प्रक्रिया से गुजरते हैं, चेतना के उस स्तर की बात है जिस स्तर पर दृश्यमान जगत के तथ्यों के जरिए सत्यों का एहसास होता है। लेकिन  ब्रह्मांड में ऐसे भी तत्व हैं जो अव्यक्त हैं जिन्हें ज्ञानेन्द्रियों या यंत्रों से पकड़ा नहीं जा सकता। इनके होने का स्पष्ट प्रमाण न मिलने के कारण इनका अस्तित्व क्लासिकल विज्ञान में स्वीकृत नहीं है। क्वांटम सिद्धांत वैज्ञानिक तरीके से उन्हीं के अस्तित्व का एहसास दिलाती है। अति सूक्ष्म होने के कारण इनके अस्तित्व को पकड़ने के लिए गणित का सहारा लिया जाता है। साहित्य और समाज में काल चक्र के प्रभाव से मुक्त, विशुद्ध ज्ञान और आनंद के आधार अव्यक्त सच्चिदानंद की बात मिलती है लेकिन इसे पाने या महसूस करने के लिए भक्ति, प्रेम और ज्ञान का रास्ता अपनाने की बात की जाती है। गौर करें कि विज्ञान जहाँ गणित के क्रान्क्रीट रास्ते को अपनाता है वहीं साहित्य एब्स्ट्रैक्ट का रास्ता चुनता है। इस रास्ते को भी इन्द्रियों के लिए बोधगम्य बनाने के लिए अवतारों की कल्पना की गई। इसे समाजशास्त्रीय स्तर पर अव्यक्त को पकड़ने का प्रयास कहा जा सकता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से चेतना के स्तर की बातों को क्वांटम तत्वों के जरिए समझने की कोशिश की जा रही है। क्वांटम तत्वों की गति आलोक गति से तेज होती है। इसलिए चेतना के स्तर पर घटने वाली घटनाएं नहीं दिखाती। इसलिए भक्ति कहें या पूंजीवादी मूल्य दोनों अपने-अपने युग में फैलकर लोगों के दिलो दिमाग में जम गए लेकिन इनके फैलकर जम जाने की घटना दिखाई ही नहीं पड़ी। सिर्फ, लोगों के व्यवहार या आचरण से इनकी व्यापक रूप से उपस्थिति की सूचना ही मिल पाई। विज्ञान और समाज को जोड़कर देखते हुए कहें तो भक्तिकाव्य में प्राप्त ‘सच्चिदानंद’ की अवधारणा का संबंध क्वांटम स्तर पर गुणात्मक परिवर्तन लाने की कोशिश से था। इस परिवर्तन को लाने के लिए राहों के संधान की कोशिश भी भरपूर की गई। इस कोशिश से उपजी क्वांटम चेतना ही भक्तिकाल को स्वर्ण युग होने का ताज पहनाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो समय के किसी बिन्दू पर किसी निश्चित उद्देश्य और गतिमयता के साथ निवेश की गई मानसिक ऊर्जा चैतन्य के उदय का कारण बनती है। भक्ति काव्य का लक्ष्य और लक्ष्य को पाने के प्रयास की दिशा एकदम स्पष्ट थी। इसलिए अव्यक्त को पाने का लक्ष्य बलिष्ठ क्वांटम चेतना के विकास का आधार बना।

मानव शरीर एक पदार्थ है। पदार्थ से ऊर्जा पैदा करके ऊर्जा के जरिए चेतना का विकास और चेतना से ब्रह्म चेतना के विकास के स्तर तक पहुँचकर मनुष्य पूर्णता को प्राप्त करता है। यह ब्रह्म ईश्वर या देव नहीं है। यह ब्रह्म प्रकृति की वह अव्यक्त सत्ता है जिसका अंश प्रकृति में सर्वत्र मिलता है। इसलिए ब्रह्मांड से लेकर परमाणु तक में प्रकृति का एक ही नियम दिखता है। ग्रह सूर्य की परिक्रमा करता है और उपग्रह ग्रह है। सूक्ष्म स्तर पर देखें तो परमाणु में इलेक्ट्रॉन उसके नाभिक के चारों ओर विशिष्ट कक्ष में घूमता है। क्वांटम सिद्धांत के जरिए इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है। ब्रह्माण्ड की गतिविधि हो या परमाणु की आतंरिक गतिविधि इनमें ऊर्जा ही सर्वत्र व्याप्त दिखती है। विचार भी ऊर्जा की ही उपज है जो चिंतन प्रक्रिया से पैदा होती है। विचार का पैदा होना क्वांटम स्तर की घटना है। अर्थात् जो सर्वत्र व्याप्त है और जगत को गतिमान रखने का आधार है उसे समाज में भले ही ईश्वर कहा जाए लेकिन वह व्यवहारिक स्तर पर ऊर्जा ही है।

सन् 1920 तक विज्ञान ने चेतना के विषय को दृश्यमान ब्रह्माण्ड के विषय से अलग रखा था। लेकिन सन् 1920 में क्लासिकल मेकैनिक्स से क्वांटम मेकैनिक्स की ओर कदमों ने इस पुरानी प्रथा को तोड़ दिया। आज क्वांटम सिद्धांत के जरिए चेतना की संरचना को समझते हुए भौतिक सत्यों को नए सिरे से समझने की कोशिश शुरू हो गई है। यह कोशिश शरीर आत्मा के संबंध को भी पुनर्व्याख्यायित करने में सहायक सिद्ध होगी। क्वांटम सिद्धांत में ऊर्जा की अलग-अलग इकाइयाँ होने की बात की जाती है। इसके अनुसार सृष्टि के आधारभूत तत्व कण या फिर तरंग दोनों रूपों में सक्रिय हो सकते हैं। इन तत्वों की गति और व्यवहार में नियमितता नहीं होती। क्वांटम तत्वों की स्थिति, गति और दिशा को भौतिक स्तर पर समय के किसी बिंदु पर समझ पाना असंभव है। क्वांटम सिद्धांत से सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत के बीच के विशाल अंतर का पता चलता है।

आइन्सटाइन ने ही क्वांटम मैकानिक्स की बात छेड़ी थी। इसी के साथ फोटोन की व्याख्या भी की तथा ‘शोषण’, ‘स्वच्छंद’ तथा ‘विकिरण के नियंत्रित उद्गार’ की अवधारणाएं भी सामने रखी थीं। लेकिन वे क्वांटम के एकाएक बदलने वाले स्वभाव को कभी स्वीकार नहीं कर पाए। उनका यह कथन कि ‘ईश्वर भले ही सूक्ष्म है लेकिन वह पासे का खेल नहीं खेलता’ (subtle is the Lord, but he does not play dice) इस बात का प्रमाण है। यहाँ क्वांटम कणों या लहरों को ही उसकी सर्वव्यापी शक्ति के कारण ईश्वर की संज्ञा दी गई है। वॉन न्यूमैन, विगनर तथा अन्य कई विचारकों का मानना है कि अगर दिमाग में घटित होने वाली क्वांटम स्तर की घटनाओं और विचारों के पास्परिक संबंधों को देखा जाए तो दिमाग और मन के दोहरे स्वरूप को उद्घाटित करने वाला सिद्धांत विकसित किया जा सकता है।

सूक्ष्म और स्थूल दोनों स्तरों पर ब्रह्माण्ड की अलग-अलग सत्ताएँ लगातार अलग-अलग ढंग से एक दूसरे से संपर्क स्थापित कर रही हैं। यह कार्य पदार्थ विज्ञान के नियमों के तहत ही हो रहा है। इस प्रक्रिया में समय और काल के व्यवधान का प्रश्न मायने नहीं रखता। क्योंकि क्वांटम स्तर के कणों की गति और दिशा का अंदाजा लगा पाना प्राय:  नामुमकिन है। चेतना का अस्तित्व इसी स्तर पर मिलता है। नोबेल पुरस्कार प्राप्त पदार्थ वैज्ञानिक प्रोफेसर मैक्सवार्न और प्रोफेसर फ्रांक विल्जेक ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि क्वांटम संबंधी सिद्धांत अद्वैत विज्ञान की मांग करता है। जिसमें प्राकृतिक दर्शन को भी शामिल किया जाना जरूरी है। अन्यथा चेतना संबंधी समस्याओं का समाधान निकाल पाना मुश्किल है। चल और अचल सत्ता के अस्तित्व के रहस्य की व्याख्या अद्वैत विज्ञान के सर्वव्यापी क्वांटम चेतना के जरिए ही की जा सकती है। गौर से देखें तो बाजारवादी मूल्यों ने पहले बुद्धि पर कब्जा जमाकर चेतना को विकृत कर दिया, और इच्छा को हवा देकर जनमानस में कब्जा जमा लिया। जब तक बाजारवादी और सामंतवादी मूल्यों के घालमेल की प्रकृति को समझकर विज्ञान सम्मत ढंग से क्वांटम स्तर पर प्रभाव पैदा करने वाली कार्य प्रणाली के जरिए मानवतावाद को प्रतिष्ठित करने का प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक विश्व को बाजारवाद के गिरफ्त से मुक्ति दिला पाना मुश्किल है।

(लेखिका लोरेटो कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर तथा सोदपुर सोलिडरिटी सोसायटी की सचिव हैं)

सम्पर्क – . 2, देशबन्धु नगर

पो. – सोदपुर,

कोलकाता – 700110

दूरभाष – 9231622659

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

5 thoughts on “क्वांटम चेतना और सत्य का अस्तित्व

  1. रोहित सक्सेना says:

    सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत के बीच क्वांटम सिद्धांत किस प्रकार कार्य कर सकता है ।
    मानव शरीर जो पंच तत्वों से मिलकर बना है क्वांटम सिद्धांत इस पर कैसे प्रभाव दे सकता है ।
    जानने के लिए उत्सुकता है ।

    • Rakhi Roy Halder says:

      क्वांटम कणों का संबंध पंच तत्व के शरीर में प्राण से है। प्राणशक्ति के तेज पर ही हमारे कार्यों की गुणात्मकता निर्भर करती है। प्राणशक्ति के प्रकाश को देखने के लिए किर्लियन फोटो खींची जा सकती है। जी.डी.वी. कैमरा के जरिये भी इसकी तस्वीर ली जा सकती है। प्राणशक्ति के कारण ही चेतना और विचार उत्पन्न होते हैं। इन्ही के जरिये क्वांटम कण पर्यावरण में फैलते हैं। आपकी सोच पैदा होने के साथ ही अपने तेज के हिसाब से इलेक्ट्रो मैग्नेटिक क्षेत्र पैदा करती है और यहीं क्वांटम कण भी होते हैं जो पर्यावरण में निसृत अन्य क्वांटम कणों से टकराते हुये प्रभाव को साथ लेकर आप तक लौट आते हैं। सागर की तरह ही हवा में भी लहरें हैं। सागर के लिए जैसे यह कथन सत्य है कि सागर अपने पास कुछ नहीं रखता सब लौटा देता है,ठीक यही बात हवा में बहने वाले क्वांटम कणों या लहरों के लिए भी सत्य है। ये क्वांटम कभी कण के रूप में पकड़ में आते हैं तो कभी लहरों के रूप में। क्वांटम के इसी अद्भुत स्वभाव ने वर्नर हाइसेन्बर्ग ( जर्मन पदार्थ वैज्ञानिक 1923 में क्वांटम मेकैनिक्स के लिए नोबल पुरस्कार) को लंबे समय तक परेशान करके रखा था। उसके बाद उन्होने तय किया कि हर बात को प्रयोगों के जरिये हासिल फार्मूलों से साबित करना संभव नहीं हैं। प्रकृति का यह जो सत्य पकड़ में आ रहा हैं उसे उसी तरह सामने रखना होगा जैसा कि वह दिखता है।इन कणों की गति और दिशा के बारे में भी अनुमान लगाना असंभव है। सबसे जरूरी बात यह है कि ये क्वांटम कण या लहरें हमारे पंच तत्व के शरीर में प्राण के प्रभाव से ही निकलते हैं। इस प्राणशक्ति के बारे में मैंने अपने लेख ‘प्राणशक्ति की वैज्ञानिक समझ’ आलेख में लिखा है।

    • Rakhi Roy Halder says:

      क्वांटम कणों का संबंध पंच तत्व के शरीर में प्राण से है। प्राणशक्ति के तेज पर ही हमारे कार्यों की गुणात्मकता निर्भर करती है। प्राणशक्ति के प्रकाश को देखने के लिए किर्लियन फोटो खींची जा सकती है। जी.डी.वी. कैमरा के जरिये भी इसकी तस्वीर ली जा सकती है। प्राणशक्ति के कारण ही चेतना और विचार उत्पन्न होते हैं। इन्ही के जरिये क्वांटम कण पर्यावरण में फैलते हैं। आपकी सोच पैदा होने के साथ ही अपने तेज के हिसाब से इलेक्ट्रो मैग्नेटिक क्षेत्र पैदा करती है और यहीं क्वांटम कण भी होते हैं जो पर्यावरण में निसृत अन्य क्वांटम कणों से टकराते हुये प्रभाव को साथ लेकर आप तक लौट आते हैं। सागर की तरह ही हवा में भी लहरें हैं। सागर के लिए जैसे यह कथन सत्य है कि सागर अपने पास कुछ नहीं रखता सब लौटा देता है,ठीक यही बात हवा में बहने वाले क्वांटम कणों या लहरों के लिए भी सत्य है। ये क्वांटम कभी कण के रूप में पकड़ में आते हैं तो कभी लहरों के रूप में। क्वांटम के इसी अद्भुत स्वभाव ने वर्नर हाइसेन्बर्ग ( जर्मन पदार्थ वैज्ञानिक 1923 में क्वांटम मेकैनिक्स के लिए नोबल पुरस्कार) को लंबे समय तक परेशान करके रखा था। उसके बाद उन्होने तय किया कि हर बात को प्रयोगों के जरिये हासिल फार्मूलों से साबित करना संभव नहीं हैं। प्रकृति का यह जो सत्य पकड़ में आ रहा हैं उसे उसी तरह सामने रखना होगा जैसा कि वह दिखता है।इन कणों की गति और दिशा के बारे में भी अनुमान लगाना असंभव है। सबसे जरूरी बात यह है कि ये क्वांटम कण या लहरें हमारे पंच तत्व के शरीर में प्राण के प्रभाव से ही निकलते हैं। इस प्राणशक्ति के बारे में मैंने अपने लेख ‘प्राणशक्ति की वैज्ञानिक समझ’ आलेख में लिखा है।

  2. अमित जैन says:

    शानदार लेख …आइंस्टीन की दुविधा( spooky action at a distance…) से लेकर डबल स्लिट एक्सपेरिमेंट और पूंजीवाद मानवीय समाज और व्यक्तिगत मॉनव साइकोलॉजी के बारे में सब बताया आपने …लेकिन फिर भी क्या आपको नही लगता क्वांटम चेतना को स्पष्ट करने के लिए आपके पास शब्द नही है…और समय और इसके अनुभव …रियलिटी शिफ्ट …स्ट्रिंग थ्योरी…multivers ..जैसे जुड़े विषय इस लेख में छूट गए आपसे…मेरा निवेदन है कि उपरोक्त विषयो पर भी आप लेख पोस्ट करेंगी…आपके लेख से लगता है आप ज्यादा बेहतर तरीको से विषयो के बारे में जानकारी दे सकती है….धन्यवाद

    • Rakhi Roy Halder says:

      जरूर । मैं समय निकालकर लिखने की कोशिश करूंगी । क्वांटम चेतना का विषय एक सागर की तरह है। इस पर एक लेख तो बस सागर की एक बूंद को ही सामने ला पाएगा और जब हम जनसाधारण के लिए लिख रहें हैं तब तथाकथित theories को लेख में जगह देने से पहले देखना होगा कि इसका समावेश विषय को अधिक क्लिष्ट न बना दे वरना मेरे लिखने का उद्देश्य ही खो जाएगा। इस विषय में जितना विस्तार है उतनी ही बारीकियाँ भी हैं। इसे पूरी तरह जानने और अभिव्यक्त करने का दावा कोई भी नहीं कर सकता। क्वांटम चेतना का स्तर एब्स्ट्राक्ट है। इसे स्पष्ट करने के शब्द की खोज में जितना विज्ञान ही theories में उलझेंगे उतना भूलभुलैया में फँसते चले जाएंगे । इस कोशिश से गुजरने के बाद ही मैंने ‘सत्य का अस्तित्व और भाषा की सीमाएं ‘ लेख लिखा है।

Comments are closed.