गानों की रॉयल्टी पर अब नहीं होगा म्यूजिक कम्पनियों का एकाधिकार

मुम्बई :  इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अपीलेट बोर्ड (आईपीएबी) ने एक ऐतिहासिक फैसले में भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री का अर्थशास्त्र ही बदल दिया है। देश की प्रमुख म्यूजिक कंपनियों के विरुद्ध म्यूजिक ब्रॉडकास्टर्स व अन्य की याचिकाओं पर दिए फैसले में बोर्ड ने स्पष्ट कर दिया है कि गानों की रॉयल्टी पर अब सिर्फ म्यूजिक प्रोड्यूसर का एकाधिकार नहीं होगा। बल्कि गाना बनने से जुड़े सभी व्यक्तियों की बराबर हिस्सेदारी होगी। मतलब यह कि अब गानों की रॉयल्टी में गायक, गीतकार, संगीतकार, साउंड रिकॉर्डिस्ट समेत सभी का हिस्सा होगा। अब तक प्रोड्यूसर यानी म्यूजिक कंपनियां इसमें मनमानी करती थीं। 31 दिसंबर 2020 को आईपीएबी के चेयरमैन और दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज मनमोहन सिंह ने 250 पन्नों का यह जजमेंट दिया। फैसले में रॉयल्टी की हिस्सेदारी के साथ ही आईपीएबी ने यह भी कहा है कि म्यूजिक कंपनी अब किसी भी ब्रॉडकास्टर को कंपल्सरी लाइसेंस देने से मना नहीं कर सकती है। इसके बदले में ब्रॉडकास्टर्स, म्यूजिक कंपनी को रॉयल्टी देंगे। बोर्ड ने रॉयल्टी की दर भी तय कर दी है। दरअसल, कंपल्सरी लाइसेंस के नाम पर म्यूजिक कंपनियां अपने गाने, अपनी पसंद के ब्रॉडकास्टर को ही देती थीं। इसके चलते कोई गाना किसी एक रेडियो स्टेशन को मिलता था तो दूसरे को नहीं मिलता था। म्यूजिक कंपनियां लाइसेंस देने में मनमानी करती थीं। पहले गीतों की रॉयल्टी चैनल के टर्नओवर के अनुसार तय होती थी, लेकिन फैसले में कहा गया है कि चैनल का टर्नओवर अच्छा हो या बुरा , चैनल गीत का ट्रैक जितना चलाएगा उसे उस अनुसार ही रॉयल्टी देनी होगी। फैसले में वर्ष 2021 से रेडियो ब्रॉडकास्टर्स के लिए अलग से रॉयल्टी की दर तय की गयी हैं। यानी रेडियो प्रसारण स्टेशन के रेट चैनल से अलग रहेंगे। मामले में पहला विरोध गीतकार जावेद अख्तर ने दर्ज करवाया था। फैसले के वक्त वह बतौर पार्टी आईपीएबी के समक्ष हाजिर भी थे। उन्होंने इसे ऐतिहासिक दिन बताया। दि एमवीएमएनटी कंपनी के सह संस्थापक फैज़ान खान कहते हैं कि अब छोटे शहरों से आने वालों का शोषण नहीं हो सकेगा। आईपीआर के विशेषज्ञ वकील अंकित साहनी कहते हैं कि अब अदालत ने दरवाज़े खोल दिए हैं। कॉपीराइट एक्ट-1957 के सेक्शन 17 में लिखा है कि संगीत सर्जक उसका पहला मालिक है, जबकि सेक्शन 2-डी में लिखा है कि निर्माता ही मालिक है। 2012 में संशोधन किया गया और सेक्शन 31-डी में बताया गया कि रॉयल्टी तय करने का काम आईपीएबी का है। मगर बोर्ड का चेयरमैन पद खाली होने से रॉयल्टी की दर तय नहीं हुई थी। सितंबर 2020 में म्यूजिक कंपनियों के खिलाफ दायर ब्रॉडकास्टर्स की 10 याचिकाओं को एक साथ मर्ज कर सुनवाई की गई।
( साभार – दैनिक भास्कर)

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