घटती रफ्तार: भारत में कुल प्रजनन दर में लगातार हो रही कमी

नयी दिल्ली । देश की जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार लगातार कम हो रही है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि ये रफ्तार आबादी के प्रतिस्थापन स्तर से भी कम हो गयी है। दरअसल, देश में कुल प्रजनन दर (यानी टीएफआर) 2 हो गई है। किसी देश की मौजूदा आबादी को बनाए रखने के लिए प्रतिस्थापन की दर 2.1 होनी चाहिए।

सरकार की ओर से हुए पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे या एनएफएचएस -5) में आंकड़े सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार समेत केवल पांच राज्य ऐसे हैं जहां कुल प्रजनन दर 2.1 से ज्यादा है। बिहार में प्रजनन दर सबसे ज्यादा 2.98 है, दूसरे नंबर पर मेघालय में 2.91 का टीएफआर है। तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है जहां टीएफआर 2.35 है। झारखंड में 2.26 तो मणिपुर में 2.17 का टीएफआर है।
पूर्व स्वस्थ्य सचिव ए आर नंदा कहते हैं कि सभी राज्यों में प्रजनन दर घट रही है। लेकिन, हमारी जनसंख्या का आकार काफी बड़ा है। जैसे चलती गाड़ी पर ब्रेक लगाने से वो तुरंत नहीं रुकती, उसे रुकने में थोड़ा वक्त लगता है। वैसे ही जनसंख्या का मोमेंटम तुरंत नहीं रुकेगा। आने वाले 20-30 साल तक हमारी आबादी बढ़ेगी। अभी ये करीब 140 करोड़ है। अगले 20-30 साल में जब ये 160 या 170 करोड़ हो जाएगी। उस वक्त हमारी जनसंख्या विकास दर शून्य हो जायेगी। उसके बाद इसमें कटौती होगी यानी उसके बाद जनसंख्या में कमी आनी शुरू होगी।

बीते तीन दशक में एनएफएचएस के पांच सर्वे आए हैं। 1992-93 में आए पहले सर्वे से अब आए पांचवें सर्वे के दौरान मुस्लिमों में प्रजनन दर में सबसे ज्यादा कमी आई है। 1992-93 में मुस्लिम महिलाओं में टीएफआर 4.41 था। जो नए सर्वे में घटकर 2.36 रह गया है। हालांकि, अभी ये ये सभी धर्मों में सबसे ज्यादा है। वहीं, हिन्दू महिलाओं में इसी दौरान टीएफआर 3.30 से घटकर 1.94 हो चुका है।

पिछली बार के मुकाबले सिख और जैन समुदाय की प्रजनन दर में इजाफा हुआ है। 2015-16 में सिख समुदाय में प्रजनन दर 1.58 थी जो अब बढ़कर 1.60 हो गई है। वहीं, जैन समुदाय में प्रजजन दर 1.20 से बढ़कर 1.60 हो गई है। ए आर नंदा कहते हैं मेरा हमेशा से मानना है कि जनसंख्या धर्म के आधार पर नहीं बढ़ती घटती है। ज्यादातर प्रजनन दर कम पढ़ी-लिखी और अनपढ़ आबादी में होती है। गरीब और अति गरीब हिन्दू आबादियों में प्रजजन दर और गरीब मुस्लिम आबादी में प्रजनन दर करीब-करीब एक ही रहती रही है। ऐसा हमेशा से दिखाई देता रहा है।

एआर नंदा कहते हैं कि देश के ज्यादतर राज्यों में टोटल फर्टिलिटी रेट यानी टीएफआर 2.1 या उससे कम हो चुका है। जो यूएन के मुताबिक किसी भी आबादी के रिप्लेसमेंट पॉपुलेशन का स्टैंडर्ड है। यानी हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि की दर सही दिशा में जा रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, जैसे कुछ ही राज्य हैं, जहां टीएफआर 2.1 से ज्यादा है। लेकिन, इन राज्यों में भी TFR तेजी से कम हो रहा है। आने वाले तीन से चार साल में यहां भी टीएफआर 2.1 तक पहुंच जाएगा।

एआर नंदा कहते हैं कि एक या दो बच्चों के लिए कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा करने से कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामले बढ़ेंगे। नंदा कहते हैं कि चीन जहां सबसे पहले जनसंख्या नियंत्रण जैसा कानून लागू हुआ उसे इसका बहुत नुकसान हुआ। खासतौर कन्या भ्रूण हत्या में बहुत इजाफा हुआ। इस कानून से हो रहे नुकसान की वजह से चीन को पहले एक से दो अब दो से तीन बच्चों की छूट देनी पड़ी।

वहीं, भारत में ओडिशा जैसा राज्य जहां इस तरह का कानून सबसे करीब 28 साल से लागू है। वहां, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को इससे नुकसान हुआ है। ये लोग राज्य की पंचायत राज व्यवस्था की चुनाव प्रक्रिया से भी दूर हो गए। वहीं जिन राज्यों में ये पॉलिसी लागू की गई है, वहां इसके असर को लेकर कभी कोई रिपोर्ट नहीं जारी की गई।

2006 में पूर्व आईएएस ऑफिसर निर्मला बुच ने इस पॉलिसी को लागू करने वाले पांच राज्यों पर अध्ययन किया था। इस स्टडी में बताया गया कि दो बच्चों का नियम आने के बाद इन राज्यो में लिंग चयन तथा असुरक्षित गर्भपात बढ़े हैं। कुछ मामलों में पुरुषों ने लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने के लिए पत्नी को तलाक दे दिया। इसके साथ ही कुछ मामलों में अयोग्यता से बचने के लिए बच्चों को गोद दे दिया गया।

बेटा पैदा होने की चाह में ज्यादा बच्चे होने की बात होती है उसका क्या?

बेटे की चाह में ज्यादा बच्चे पैदा करने के चलन में भी कमी आई है। ताजा सर्वे बताता है कि 65 फीसदी महिलाएं जिनके दो बेटियां है वो बेटे की चाह में तीसरा बच्चा नहीं करना चाहती हैं। गांवों के मुकाबले शहरों में प्रजनन दर काफी कम हो गई है। शहरों में ये घटकर 1.6 हो गई है। वहीं, गांवों में ये आंकड़ा 2.1 पर है। यानी, गांवों में भी प्रजनन दर प्रतिस्थापन के स्तर पर आ चुकी है। कुल प्रजनन दर 2 हो गई है। जो पिछली बार के 2.2 से भी कम है। शहर हो या गांव हर सर्वे में  टीएफआर लगातार कम हो रही है। 1992-93 में हुए पहले सर्वे एनएफएचएस -1 में गांवों में कुल प्रजनन दर 3.7 शहरों में ये 2.7 थी। 1992-93 में कुल टीएफआर 3.4 था।

(साभार – अमर उजाला)

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