जलियाँवाला बाग हत्याकांड – हम कभी नहीं भूल सकते 13  अप्रैल 1919 का दिन

प्रियंका सिंह, पी.एच.डी.शोधार्थी, कलकत्ता विश्वविद्यालय

एक समय था जब भारत को उसकी समृद्धि और सम्पन्नता के कारण उसे सोने की चिड़िया कहा जाता था | दिन बदले, समय बदला धीरे-धीरे कब समय की वसंत ऋतु ने पतझड़ का रुख कर  लिया पता ही नहीं चला | जैसे गुड़ की मिठास के कारण उसके आस पास चीटियों का जमावड़ा हो जाता है, और देखते ही देखते चीटियां उस गुड़ को उसकी मिठास सहित चट कर जाती है| ऐसा ही कुछ हुआ भारत देश के साथ | समय- समय पर होने वाले बाहरी आक्रमण, लूट-पाट, अत्याचारों ने भारत की समृद्धि को बिलकुल नष्ट कर दिया| ईरान, यूनानी, मुगल और ब्रिटिश आदि द्वारा भारत पर किये गए आक्रमणों की एक लम्बी सूची है| जिन्होंने हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को हमसे दूर कर दिया| हालाँकि ब्रिटिश राज का कहर विश्व के अन्य देशों पर भी बरपा किन्तु यदि एक अकेले भारत की बात की जाए तो अंग्रेजों ने यहां पूरे 200  साल तक अपना आधिपत्य कायम रखा| यही कारण है कि भारतीय इतिहास का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजी राज द्वारा किये गए जुल्मों से भरा पड़ा है| इसकी शुरुआत सन 1608 से हुई जब अंग्रेज भारत में व्यापार करने की इच्छा से मेरठ शहर द्वारा भारत में आए ,और देखते ही देखते सम्पूर्ण भारत को ही अपना सम्राज्य बना लिया  |

इन 200 वर्षों के दौरान अलग- अलग कूटनीतियों से अंग्रेजों ने भारतीय मानसिकता को प्रभावित किया | रेल मार्ग , डाक तार व्यवस्था , स्कूल- कॉलेज आदि के निर्माण द्वारा भारतीयों के सम्मुख यह ढोंग करते रहे कि यह सब कुछ भारतीयों की सेवा में, भारत देश को समृद्ध बनाने हेतु किया जा रहा|  किन्तु वास्तव में इनकी मनसा येन केन प्रकारेण अपनी चाल बाजियों से भारत की जनता को भुलावे में डालना था| अंग्रजों द्वारा ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति हमारे समक्ष इसी का एक सशक्त उदाहरण है| यह तथ्य तो सर्वविदित है,कि समय परिवर्तनशील है |ऐसे में अब बारी थी अंग्रेजी हुकुमत के तख्तापलट की| एक न एक दिन अंग्रेजों की इन सभी जालसाजियों के प्रति आवाजों का उठना निश्चित था,और वह वही समय रहा जिसे हम 1857 के विद्रोह में रूप में जानते हैं |

1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था| यह विद्रोह दो वर्षो तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला, और यहीं से भारत की आज़ादी की नीव पड़ी| जिसके साकार रूप को देखने का सुख  1947 में प्राप्त हुआ|  इस क्रांति के बाद अंग्रेजों की दमन नीतियां अपनी क्रूरता के साथ और भी उग्र हो गयीं | इसी क्रूरता का एक वीभस्त दृश्य १९१९ का जन संहार जलियांवाला बाग़ हत्याकांड रहा जिसकी रक्तिम छवि आज भी भारतियों में ह्रदय पटल पर अंकित हैं| जिसका हाहाकार आज भी भारतीय जनमानस के कानों में गुंजायमान है|

अंग्रेजी हुकूमत की मनमानियों के तहत सन 1919 में भारत देश में ब्रिटिश सामाज्य द्वारा कई तरह के कानून लागू किये गए| जिनका विरोध समय- समय पर भारत के अलग अलग राज्यों में हुआ| 6 फ़रवरी, साल 1919 में ब्रिटिश सरकार के इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल  में ‘रॉलेक्ट’ नामक बिल को पेश किया गया | इस बिल को ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ ने मार्च के महीने में पास कर दिया था जिसके बाद ये बिल एक अधिनियम बन गया | इस अधिनियम की मदद से भारत की ब्रिटिश सरकार अपने खिलाफ  भारतीय क्रांतिकारियों पर काबू पाना चाहती थी और हमारे देश की आज़ादी के लिए चल रहे आंदोलन को पूरी तरह से ख़त्म करना चाहती थी | अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए इस अधिनियम का महात्मा गाँधी सहित कई नेताओं ने विरोध किया था | गाँधी जी ने इसी अधिनियम के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन को पूरे देश में शुरू किया |यह आंदोलन अपनी सार्थक गति से आगे बढ़ रहा था जिसके परिणाम स्वरुप भारी संख्या में भारतीय इस आंदोलन में अपनी सहभागिता दर्ज करवाने लगे, जो कि अंग्रेजी हुकूमत के सम्मुख एक बड़ी समस्या के तौर पर अपना मुँह बाए खड़ी थी|

13 अप्रैल 1919 ,यह बैसाखी का दिन था जिस दिन इस एक्ट के विरोध में पंजाब,अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में सभा होनी थी | इस तरह की सभा या सामूहिक जमावड़े की रोक थाम के लिए पूरे शहर में पहले से ही कर्फ्यू की घोषणा हो चुकी थी| इसके उपरांत भी बाग़ में स्वत्रंता की मांग करने वाले हज़ारों आंदोलनकारियों की भीड़ इकट्ठा थी,जो शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग मौजूदा सरकार के समक्ष रखना चाहती थी| अंग्रेजों की कूटनीति और क्रूरता का दोहरा रूप हमें एक बार फिर दिखा जब पहले इन्होने सभा के लिए बाग़ की भीड़ को जानबूझ कर इकठ्ठा होने दिया| फिर जैसे सभी भारतीयों को एक बड़ा सबक सिखाने जैसे इरादे से ‘ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर’ अपने 90 सिपाहियों के साथ बाग में पहुंचे और बिना किसी पूर्व चेतावनी के अंधाधुंध गोलियाँ चलने का आदेश दे  डाला|

आंकड़ों के अनुसार इस निर्मम हत्याकांड में करीब 379 लोग मरे गए थे और लगभग 1000 लोग घायल हुए थे| जबकि कुछ जानकारों का यह मनना था कि इस नरसंहार में मरने वालों की संख्या 1000 से पार कर चुकी थी,जबकि 1500 से ऊपर लोग घायल हुए थे | इस हत्याकांड में जाने कितने ही परिवार जनरल डायर के एक आदेश से उनकी गोलियों का निशाना बन गए| बैसाखी  का त्यौहार एक कारण था जिसके तहत उस सभा में महिलाओं सहित बच्चों की उपस्थिति भी भारी मात्रा में थी फलतः वे सब भी इस नरसंहार की भेंट चढ़ गए |

अमृतसर में भारतीयों द्वारा दी गई ये क़ुरबानी व्यर्थ नहीं गई | इस घटना ने स्वतंत्रता की लड़ाई में उस धधकती ज्वाला का कार्य किया जिसमें अंततः सन ११९४७ में अंग्रेजी हुकूमत का दहन हुआ |यह हत्याकांड स्वतंत्रता संग्राम में बड़े बदलाव का कारण बनी | विशेष कर  पंजाब के लोगों में यह आक्रोश बन कर उभरा| ब्रिटिश सरकार की ये क्रूरता बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान के रूप में आज भी अंकित है| भारतीयों के लिए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड उनके इतिहास की सबसे दारुण घटना का उदाहरण बन कर आज भी उनकी संवेदनाओं को झंकृत करती रहती है |भारत की यह स्वतंत्रता ऐसे ही न जाने कितने बलिदानों का प्रतिफल है|

 

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