तिल सकरात

सुनीता सिंह

अम्मा ने जब सुबह जगाया

खीच रजाई मैंने मुँह छुपाया

क्यों अम्मा! क्या कुछ है खास

बिटिया, आज है तिल सकरात

मैं उठकर आँगन में आई

शीतलहर थी गहरी छायी

चमक रहा था हर इक कोना

दहक रहा जल भरा भगोना

ओह! कुछ भूला सा याद आया

कल अम्मा ने था दही जमाया

चिवड़ा भी तो था कुटवाया

नही चलेगा कोई बहाना

सुबह सुबह था आज नहाना

चिवड़ा दही गुड़ चावल दाल

सजा हुआ था दान का थाल

शीघ्र नहा चौके में आए

औ’ ईश्वर को शीश नवाए

दान पात्र को हाथ लगाया

फिर संक्रांति का भोजन पाया

दही चिवड़ा मिठाई तिल

सबने खाए थे हिलमिल

गूँज रहा था चौक चौपाल

हर हर गंगे सीता राम

साँझ को जब बाबा घर आए

भीष्म भगीरथ का किस्सा लाए

चले पुनः सूरज उत्तरायन

बना आज दिन ऐसे पावन

जाग उठा अम्मा का चौका

खिचड़ी में लगा घी का छौंका

जीवन के कण कण में आज

नाच रहा एक शुद्ध प्रकाश

आज है पावन तिल सकरात

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