तीन महिलाएं…तीन क्षेत्र…तीन उड़ान….अशिमा, निधि, शेनिका

किसी भी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी आज सामान्य बात है। लेकिन कोई ऐसा फील्ड हो, जिसमें महिलाएं कुछ ऐसा कर दिखाएं, जो पुरुषों को भी पीछे छोड़ दें, या यों कहें कि वो भीड़ से अलग दिखें तो इसे उनकी अनूठी कामयाबी कहा जाना चाहिए। राजस्थान की ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है। महिला दिवस पर ऐसी ही तीन महिलाओं का जिक्र कर रहे हैं, जो अपने हौसलों से प्रेरणा बनी हैं। नयी राह दिखाने वाली साबित हुई हैं। आशिमा ने उस मोटर स्पोर्टस को करियर चुना, जिसमें एक गलती जिंदगी पर भारी पड़ सकती है
राजस्थान ही नहीं देश में मोटर स्पोर्ट्स में लड़कियों की संख्या बहुत कम है लेकिन जयपुर की आशिमा कौशिक ने इस खतरनाक चुनौती को अपना पैशन बनाया और पुरुषों के वर्चस्व वाले मोटर स्पोर्ट्स में कदम रख चैंपियन बनीं। आशिमा इन दिनों टेक्सास में हैं। वह कहती हैं- मुझे बचपन से गाड़ियों का शौक था। जब थोड़ी बड़ी हुई तो मां के साथ घूमने जाते वक्त नजर रखती कि कैसे ड्राइव की जाती है। इसी शौक ने ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया। जैसे ही लाइसेंस बना, मैंने तय किया कि जब मैं तेज गाड़ी चला सकती हूं तो फिर रेस में शामिल क्यों नहीं हो सकती। बस यह खेल चुन लिया।
‘एक-एक कर 30 लड़के फंसे गड्‌ढे में, अकेले मैंने कार निकाली’
आशिमा कई रैली और रेस में हिस्सा ले चुकी है। कई में चैंपियन बनीं, लेकिन कई ऐसे पल हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। वह बताती हैं कि बीकानेर के करणी सिंह स्टेडियम में अल्टीमेट डेजर्ट ऑफरोड चैंपियनशिप में 30 लड़कों के बीच मैं अकेली लड़की थी। इसके एक राउंड में एक गहरे गड्‌ढे में प्रवेश कराकर कार को बाहर निकाला जाना था। एक-एक कर 29 लड़कों की कारें फंस गयीं। उन्हें क्रेन से बाहर लाया गया। जैसे ही मेरा नंबर आया, स्टेडियम में मौजूद लोगों ने शोर मचा दिया। लोग सीटी बजाने लगे, वे शो कर रहे थे कि जब लड़के नहीं निकाल सके तो तुम क्या कर लोगी। मेरा को-ड्राइवर मेरा भाई सिद्धार्थ था। हमने चुनौती को स्वीकार किया। कार गड्‌ढे में प्रवेश कर चुकी थी, लोगों की जुबान से सामूहिक स्वर निकला, ये भी गयी…। हमने एक-एक कर सभी खिलाड़ियों की गलतियों को बड़े ध्यानपूर्वक नोटिस किया और तय किया कि ये सब गलतियां नहीं करनी हैं। बस अचानक से कार बाहर आ गयी। पूरा स्टेडियम अचानक ऐसे शोर में तब्दील हो गया जैसे सचिन तेंदुलकर ने अंतिम गेंद पर छक्का लगाकर वर्ल्ड कप जीता दिया हो।
आशिमा के को-ड्राइवर या नेविगेटर सिद्धार्थ कौशिक ने बताया कि आशिमा कभी भी सड़क पर तेज ड्राइव नहीं करती लेकिन उसे शुरू से ही स्टंट करने का शौक था। वह मैदान में बड़ी कार लेकर चली जाती और स्टंट करती। मम्मी चौंक जातीं, लेकिन अंतत: उनको आशिमा का यह रूप स्वीकार करना ही पड़ा। आशिमा ने ऑटो क्रॉस, रॉयल राजस्थान रैली, हिमालय पार्ट, डेजर्ट स्टॉर्म जैसी कई चैंपियनशिप में हिस्सेदारी की और अंतिम दौर तक पहुंचीं।
सोलर प्लांट लगाकर 22 साल की लड़की ने खड़ा किया 500 करोड़ का कारोबार
बीकानेर के एक गाँव में सोलर लैंड विकसित कर सोलर एनर्जी प्रोडक्शन का बिजनेस शुरू कर इस स्तर पर पहुँचने वाली राजस्थान की एकमात्र युवती हैं निधि गुप्ता। निधि ने बताया कि उन्होंने जयपुर से ही इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद अपना बिजनेस करने की ठानी। आईएफएस पिता आरपी गुप्ता ने प्रोत्साहित किया और मैंने सोलर प्लांट के फील्ड में उतरने का फैसला किया। मैंने अपनी बचत का पैसा इकट्‌ठा किया और तय किया कि इसी पैसे से मैं अपने व्यवसाय को खड़ा करूंगी। जब व्यक्ति में कुछ करने की हिम्मत हो तो वह सब कुछ कर पाने में सक्षम होता है। मुझे ताकत मिली और मैंने अपने दम पर बाजार का सर्वे शुरू किया। मेरे भाई ने मेरी इस काम में पूरी मदद की। असल में पूरा प्रोजेक्ट बनने के बाद जब बाजार से पहला ऑर्डर मिला तो मुझमें नयी ताकत का संचार हुआ। शुरुआत करने के लिए जब में बीकानेर के गांव पहुंची तो गांव के लोगों ने सोचा 22 साल की लड़की है, क्या कर लेगी। फिर उन्होंने देखा कि प्लांट कमीशन के दौरान मैं आधी रात तक वर्करों से काम कराती रहती, उन्हें गाइड करती तो गांव के लोगों का सपोर्ट मिलने लगा। एक बार सिविल वर्क के दौरान कई लड़के आ गए, बोले- काम रोको। मेरे साथ बदसलूकी तक करने को उतारू हो गए। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने तय किया था अपना काम स्थापित करना ही है। और उनके खिलाफ पुलिस में भी गयी, कलेक्टर से भी मिली। खैर शुरुआत 1 लाख रुपए के निवेश से की थी, आज कम्पनी 500 करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच गई है। कम्पनी ने 250 किलोवाट से शुरुआत की थी जो 600 मेगावाट बिजली उत्पादन तक पहुंच गई है।सिरोही की बेटी, जो अमेरिका आर्मी में कैप्टन रैंक पर पहुंचने वाली पहली भारतीय युवती
अमेरिका की आर्मी में कैप्टन रैंक तक पहुंचने वाली पहली भारतीय युवती हैं सिरोही की डॉ. शेनिका शाह। जिस जगह पर शेनिका पहुँचीं हैं, उसे देखकर किसी भी भारतीय को गर्व हो सकता है। भारतीय परिवार की इस बेटी ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसके कारण आज अमेरिका की आर्मी उसे सैल्यूट करती है। यही भारत की बेटी की ताकत है जो हमारे देश की बेटियों के लिए प्रेरणा बनी है। कैप्टन डॉ. शेनिका शाह के पिता प्रीतम शाह मूल रूप से राजस्थान में सिरोही में पिंडवाड़ा निवासी हैं और माँ गुजरात के महुधा की। अपने काम के सिलसिले में अमेरिका के न्यूयॉर्क गए प्रीतम शाह की बेटी अमेरिका की आर्मी में कैप्टन बन गई। शेनिका डॉक्टर हैं। यह बेहद असाधारण हैं अमेरीकी आर्मी के लिए।
सेना में डॉक्टर की भूमिका
असल में शेनिका न्यूयॉर्क सिटी के हेरिकस स्कूल से पढ़ीं। इसके बाद साइंस और ऑस्टियोपैथी मेडिसिन में एमडी के लिए न्यूयॉर्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला ले लिया। बतौर शेनिका- मैंने स्नातक की डिग्री के दौरान ही अमेरीकी सेना में निकली सेकंड लैफ्टीनेंट की पोस्ट के लिए आवेदन कर दिया। मेरा सलेक्शन हो गया। मुझे इस पद पर नियुक्ति मिल गई। अब जैसे ही यानी 2020 में मुझे डॉक्टरी की स्नातक उपाधि मिली, मुझे प्रमोट कर कैप्टन बना दिया गया। मैंने आर्मी हॉस्पिटल में एक डॉक्टर के रूप में काम करना शुरू कर दिया है। मैं भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की महिलाओं से कहना चाहती हूं कि वह खुद को कमजोर न समझें। क्योंकि, इंसान जो भी कर सकता है वह सब वह कर सकती हैं। बस जरूरत है हौसले की। हिम्मत की।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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