थप्पड़ का प्रतिवाद

  • शैलेश गुप्ता

करना है प्रतिवाद
तुम्हें उस थप्पड़ का भी
जो मिला था ,
अहिल्या को …
चंद्रमा के कुकृत्य के लिए …
पत्थर बनने का ..!

तुम्हें ही करना होगा …
प्रतिवाद ..
उस थप्पड़ का भी
जो मिला था सीता को
श्री राम से ..
अपनी मर्यादा पुरुषोत्तम की
छवि बनाए रखने के लिए …
अग्नि परीक्षा कराने का …
और ..फिर भी …
गर्भ की अवस्था में
वन में परित्याग करने का …!

नहीं भूलना है तुम्हें …
उस थप्पड़ को …भी ..
जो भरी सभा में …
मिला था द्रौपदी को …
पराक्रमी पतियों के द्वारा …
जुए की शर्त निभाने के लिए ….
चीर हरण का ..!

करो प्रतिवाद तुम …
उस हर थप्पड़ की …
जिसका करती हो ,
सामना राह चलते तुम ….
वासना की दृष्टि में …
गली …मुहल्ले …बस अड्डे ..
चौराहों पर …!

तुम्हारी ख़ामोशी …
लोग शराफ़त नहीं …
कमज़ोरी समझते हैं तुम्हारी …!

नहीं लड़ेगा कोई …
तुम्हारे लिए …
सब कहेंगे …
जाने दो …होता है ये …
सहना पड़ता है …!

यही थप्पड़ वाली …
संस्कृति ही तो …
मिली है तुम्हें विरासत में …!

तो कौन करेगा …प्रतिवाद …
यदि तुम स्वयं नहीं करोगी ..! !

करो प्रतिवाद ..तुम …
अपने भविष्य के लिए …
तोड़ कर अपनी ख़ामोशी को ….

हर उस थप्पड़ का ….

जो सामाजिक हो …या …
न्यायिक हो ….
सांस्कृतिक हो ..या …
आर्थिक हो …

सामूहिक हो …या …
परिवारिक हो …!

तुम्हारा प्रतिवाद ही ….
तुम्हारी आधी जीत है …!

 

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