नहीं रहे प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह

नयी दिल्ली :  हिंदी जगत के प्रख्यात साहित्यकार और आलोचक नामवर सिंह नहीं रहे। 93 वर्षीय नामवर सिंह पिछले कई दिनों से वे बीमार चल रहे थे, उन्होंने मंगलवार की रात 11.51 बजे अंतिम सांस ली। जनवरी में वे अचानक अपने रुम में गिर गए थे जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था, हालांकि उनके इलाज में कुछ सुधार हुआ था लेकिन वे पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाए थे। बता दें कि उन्हें 1971 में साहित्य अकादमी सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। हिंदी साहित्य में उन्होंने कविताएं, कहानियां, आलोचनाएं, विचारधाराएं कई सारी चीजें लिखी हैं। नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई 1927 को जायतपुर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। अपने अधिकतर आलोचनाओं, साक्षात्कार इत्यादि विधाओं में साहित्य कला का सृजन किया है। उन्होंने ना सिर्फ साहित्य की दुनिया में अपना खासा योगदान दिया है बल्कि शिक्षण के क्षेत्र में भी उनका काफी योगदान है।

नामवर सिंह ने काशी विश्वविद्यालय में एमए और पीएचडी की इसके बाद इसी विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रोफेसर के पद कई वर्षों तक अपनी सेवाएं भी दीं। नामवर सिंह ने सागर विश्वविद्यालय में भी अध्यापन का काम किया, लेकिन यदि सबसे लंबे समय तक रहने की बात करें तो वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्याल में रहे। जेएनयू से सेवानिवृत्त होने के बाद नामवर सिंह को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा के चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने लोकसभा  चुनाव भी लड़ा था। उन्होंने 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रूप में चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें इसमें हार मिली थी। उन्होंने समीक्षा, छायावाद, औऱ विचारधारा जैसी किताबें लिखीं हैं जो बेहद चर्चित है। इनके अलावा उनकी अन्य किताबें इतिहास और आलोचना, दूसरी परंपरा की खोज, कविता के नये प्रतिमान, कहानी नई कहानी, वाद विवाद संवाद आदि मशहूर हैं। उनका साक्षात्कार ‘कहना न होगा’ भी सा‍हित्य जगत में लोकप्रिय है।

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