पंचमी

पूजा सिंह 
शाम के चार बजे कॉलेज के गेट पर बड़ी हल-चल मची हुई थी जैसे बड़े दिनों बाद कुछ भूला सा मिल गया था कल पंचमी है दोस्तो ने खूब उत्साह से कहा माँ दुर्गा का पंडाल देखने चलेंगे।देखते तो परिवार के साथ भी हैं मगर दोस्तों के साथ देखने का मज़ा तो कुछ और ही है प्रताप ने कहा।बात पंचमी की हुई नही कि लड़कियों ड्रेस और खाने को ही ज्यादा महत्व देना सही समझा।कोई गाउन पहनने की बात कह रहा है और कोई जीन्स की किसी और ने बहुत ही खूबसूरत टॉप की बात की ,अच्छा हमारे चप्पल कैसे जंचेंगे? कॉलेज का गेट इन्ही बातों से गूंज रहा था।राखी अब भी चुप थी सबकी बातों पर मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दे रही थी, दिखावा ऐसे जैसे उसके पास भी इन सारी चीजों की कमी नही है, और सोचे जा रही थी कि एक खूबसूरत टॉप और जीन्स जैसे कपड़े पहन कर ही लोग मॉर्डन बनते हैं?मेरे पास जो भी है जैसा भी है वही पहनूँगी और अच्छी भी लगूंगी लेकिन कपड़ो से कोई मॉर्डन नही बनता फिर भी इसे पहनने के अपने शौक भी तो होते हैं कॉलेज के समय में अगर कुरती के अलावा कोई और कपड़े पहन कर शौक न पूरे करू तो कब? अगर कोई मना न करता तो शायद इनकी तरह मैं भीकुछ स्टाइलिश पहन पाती! और ऊपर से आर्थिक तंगी। किसी भी तरह की जिम्मेवार बनने के पहले डर और आर्थिक व्यवस्था पहले सताती है।अचानक पुनिता ने एक झटका दिया राखी अपने असल दुनियां से उनकी दुनिया में फिर से वापस आगई ।हम लोगों ने एस्प्लेनेड जाने का प्लान किया है माही को नई चप्पल चाहिये चलो सब साथ मे चलते हैं पुनिता ने कहा।मगर मैं तो सिर्फ तीस रुपये लेकर आई हूँ अपने पैसे का बैग आज जल्दी में घर पर ही छोड़ दिया राखी ने जैसे बात छुपाने की कोशिश की।तेरे मेट्रो का किराया मैं दे दूंगी तू बाद में मुझे दे देना पुनिता ने उसका हाथ खीचते हुए कहा।
दुर्गा पूजा का बाज़ार धरमतल्ला बाज़ार को काफी गरम किए हुए थी किसी भी चीज पर नज़र जाती तो ठहर ही जाती थी झमाझम भीड़ में एक अलग ही हलचल थी।रंग बिरंगे टॉप और गाउन वह अपने कल्पना में पहन रही थी फिर भी खुद को कठोर और स्वाभिमानी बनाते हुए वह अपने पापा का शुक्रिया करती क्योंकि उनके बदौलत हर रोज़ वह कॉलेज आपाती थी मगर माँ के ताने हर रोज़ घर से निकलने के पहले मुँह मीठा करवाते झूठ भी तो नही कहती थी उस तीस रुपये के घर मे कोई काम हो सकता था कि जैसे मै बहाने से घर से अलग रहना चाहती होऊं।
घर पहुँचने में शाम के सात बज गए थे सीढिया चढ़ने में डर लग रहा था कि क्या बहाना बनाऊ जिससे माँ की डांट से बचा जा सके उनकी हर बार की एक ही बात राखी को याद दिलाती थी कि उसकी जाति स्त्री जाति है ठीक ही तो कहती है एक कलम चलाने से परिवार कैसे संभाला जा सकता है माँ अपने जीवन मे परिवार को संभालते जो कष्ट भोगते आई है शायद उससे मुझे भी रूबरू करवाना चाहती हो ताकि आगे चल कर ससुराल का ताना ना सहना पड़े।
आज पंचमी है दिन में ही घूमने का एक प्रोग्राम बनाया गया है मगर बड़ी मुश्किल से माँ को मनाया है आठ बजे तक आजाने का वायदा कर और और पापा से दो सौ रुपये की माँग कर जाने को तैयार हुई बड़े शौक से दीदी के घर से मिले कुरती को पहना और घर स निकली
माझेरहाट रेलवे स्टेशन पे सारे दोस्त एक साथ मिले एक दूसरे की तारीफों के तो जैसे पुल बंधे हैं, राखी तू अच्छी लग रही है मगर हम लोगों ने तो ड्रेस कोड जीन्स रखा था वो पहनती तो एक अच्छा ग्रुप बनता ।राखी का उस समय बिगड़ा तो कुछ भी नही मगर अंदर से बाहर तक झकझोर सी गई उसे लगा वह भला आई ही क्यों?अब सब अपनी तरह से सेल्फी लेंगे मुझ पर दया करके मुझे भी शामिल करेंगे खैर दोस्त ऐसे तो नही है सोच कर आगे बढ़ी।प्रताप ने कहा मौलाली से शुरू करेंगे औऱ न्यू अलीपुर देखते हुए घर जाएंगे हाँ ठीक है माही ने हामी भरी,
न्यू अलीपुर में 4:30 बजे ही कितनी भीड़ है ना जाने कितनी देर लाइन में खड़े रहना पड़ेगा? पंडाल देख कर निकलने में शाम के सात बज गए थे घर भी जाना है नही अब नही घुमुंगी। सुनो मेरी तबियत ठीक नही लग रही है घर जाना है और बिना किसी के उत्तर पाए सरपट निकल पड़ती है। बस को भी सरपट भगा देना चाहती है सात से साढ़े सात समय तीर की तरह निकलता जा रहा है उफ्फ अब ये दुर्गा पूजा का जाम मेरी ही गलती हुई क्यों नही वो जल्दी निकल गई आई भी तो कौन सा दोस्तो में खुद को को शामिल कर पाई । आठ बजने वाले हैं अब भी बस बीस मिनट की दूरी पर है बात कुछ बड़ी नही है थोड़ी सी अपनी ज़िंदगी जीने ही तो गई थी कोई बड़ा पाप नही किया क्या पुनिता और माही भी ऐसे ही डर रही होंगी नही शायद वे शाशन में नही अनुशाशन में है और यही तो ज़रूरत है बस थोड़ा सा खुलासा मिलने पर वे सांस ले सकती है बिगड़ नही सकती।राखी बिना किसी के सवाल किए खुद को जवाब दिए जा रही थी और मोबाइल की घंटी लगातार उसे घर की याद दिला रही थी।

शुभजिता

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