पद्मश्री : खुद गरीबी के कारण पढ़ नहीं सके मगर सन्तरे बेचकर खोला स्कूल

बेंगलुरु : संतरे बेचने वाले 65 वर्षीय हरेकाला हजब्बा को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। हजब्बा को यह सम्मान शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक कार्य करने के लिए दिया गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में हजब्बा को देश के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक पद्मश्री से नवाजा। र्नाटक के दक्षिण कन्नड़ा के न्यूपाड़ापू गांव के रहने वाले हरेकाला हजब्बा ने अपने गाँव में अपनी जमापूंजी से एक स्कूल खोला। इसके साथ ही वह हर साल अपनी बचत का पूरा हिस्सा स्कूल के विकास के लिए देते रहे। हजब्बा को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा 25 जनवरी 2020 में ही हुई थी, लेकिन फिर कोरोना वायरस महामारी के चलते समारोह का आयोजन नहीं हो सका।
कौन हैं हरेकला हजाब्बा ?
हरेकला हजब्बा कर्नाटक के मैंगलोर शहर में एक संतरा विक्रेता हैं. उनकी उम्र 65 साल है। अपने गाँव में स्कूल न होने की वजह से हजब्बा पढ़ाई न कर सके, लेकिन शिक्षा के प्रति समर्पण ऐसा था कि अब वो शिक्षितों के लिए भी मिसाल बनकर उभरे हैं।
 कैसे मिली स्कूल खोलने की प्रेरणा?
हजाब्बा पढ़े-लिखे नहीं हैं। यहां तक कि वो कभी स्कूल नहीं गए। वो बताते हैं, ‘एक दिन विदेशी कपल उनसे संतरे खरीदना चाहता था। उन्होंने कीमत भी पूछी। लेकिन मैं समझ नहीं सका। उन्होंने कहा कि यह मेरी बदकिस्मती थी कि मैं स्थानीय भाषा के अलावा कोई दूसरी भाषा नहीं बोल सकता। वह कपल चला गया। मुझे बेहद बुरा लगा। इसके बाद मुझे यह ख्याल आया कि गांव में एक प्राइमरी स्कूल होना चाहिए ताकि हमारे गांव के बच्चों को कभी उस स्थिति से गुजरना ना पड़े जिससे मैं गुजरा हूं।’
और फिर जब शुरू किया स्कूल
हजाब्बा ने गांववालों को समझाया और उनकी मदद से स्थानीय मस्जिद में एक स्कूल शुरू किया। इसके अलावा वो स्कूल की साफ-सफाई और बच्चों के लिए पीने का पानी भी उबालते। साथ ही, छुट्टियों के दौरान वह गांव से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत कार्यालय जाते और बार-बार अधिकारियों से शैक्षणिक सुविधाओं को औपचारिक रूप देने की विनती करते। हजाब्बा की मेहनत रंग लाई। जिला प्रशासन ने साल 2008 में दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत के अंतर्गत नयापुडु गांव में 14वां माध्यमिक स्कूल बनवाया।

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