पर्यावरण रहा, धरती रही…तब ही हम भी रह सकेंगे

जून का महीना हमें याद दिलाता है कि पर्यावरण की रक्षा हमारे लिए कितनी आवश्यक है। हम एक बार ही सचेत होते हैं, पौधे लगाते हैं, तस्वीरें खिंचवाते हैं और अगले दिन के बाद यह चिन्ता 365 दिन के लिए आराम करने चली जाती है। यह सही है कि हर बात के अच्छे और बुरे..दोनों ही पक्ष होते हैं पर खुद से एक सवाल तो बनता है कि हमारे पूर्वजों ने जो हरी – भरी धरती दी…विकास के नाम पर हमने उसकी दुर्दशा तो कर दी मगर हम आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जाएंगे? सोचने में अजीब लगता है मगर यह एक गम्भीर सवाल है जिसका हल किसी सेमिनार में नहीं होने वाला, इसका समाधान तो तब ही निकलेगा जब हम अपनी आदतों में पर्यावरण रक्षा को शामिल करेंगे। अब कई ऐसी चीजें आ गयी हैं जो इस दिशा में मदद कर सकती हैं। जब भी सुविधाओं की बात हो..एक बार सोचिएगा..क्या इनके बगैर जीना इतना कठिन है? क्या जब फ्रिज या एसी नहीं था तो हम जीते नहीं थे? दरअसल कहीं न कहीं ..हमने लक्जरी को जरूरत मान लिया है…लक्जरी बुरी बात नहीं लेकिन अगर यह प्राकृतिक उपादानों को लेकर हो तो सोने में सुहागा हो सकता है। हर घर में एक बालकनी हो, जहाँ ढेर सारे पौधे हों…बहुत से पौधे ऐसे भी होते हैं जिनको बहुत देखभाल की जरूरत भी नहीं पड़ती। अगर हर कमरे की खिड़की में एक पौधा भी हो तो जरा सोचिए हम कितनी हरियाली अपने घर ले आए हैं। मिट्टी के क्षरण को रोकने की जरूरत है। वाहन चलें तो बायोडीजल इस्तेमाल हो…बिजली की जरूरत सौर ऊर्जा से पूरी हो…मिट्टी के दो बर्तन लेकर बड़े बर्तन में रेत भरकर उसमें छोटा पात्र रखकर सब्जियाँ और फल रखी जा सकती हैं..बस बीच – बीच में पानी के छींटे मारते रहिए और यह फ्रिज की जरूरत को एक हद तक कम कर देगा। घड़े का पानी पीजिए और यह आपका गला सुरक्षित रखेगा…ऐसी कई छोटी – छोटी बातें हैं जिनका ध्यान रखकर हम पर्यावरण के साथ अपना रिश्ता मजबूत कर सकते हैं। यह रिश्ता बहुत जरूरी है…सिर्फ धरती के लिए ही नहीं…हमारे लिए भी क्योंकि पर्यावरण रहा, धरती रही…तब ही हम भी रह सकेंगे।

शुभजिता

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