प्रेम की खोज

डॉ. वसुंधरा मिश्र

मैं भटका
पलायन करने लगा
घर छोड़ हवा में उडा़
एक और घर बनाया
घर टँगा रहा
समाज देखता रहा
क्रिया प्रतिक्रिया चलती रही

मेरे अंश घर में रह गए
प्रेम खो गया, मैं खो गया लटके घर में
प्रेम की परिभाषा बदल गई
सिर्फ कंधे तक रह गया मैं
प्रेम बँट गया कई रूपों में
जीवन से गया भटक

कर्तव्य बोध से रहा अनजान
कोशिशें खत्म होने लगीं
मैं निहारने लगा मुझको
उम्र के इस पड़ाव पर ठहर
स्थिर हो, देखता रहा

पीछे छूटती गलियों, पगडंडियों पर
पैरों के निशान देते रहे
तुम्हारे होने का प्रमाण
कुरेदना, खोदना एक – एक कण को सहेजना
कितना कठिन है इस भाषा को पढ़ना

तुम भी तब अनजान भटका करते थे
अपनी पहचान पाने के लिए
आज सिर्फ़ तुम्हारे पैरों के पीछे ही
लोगों की जमात भाग रही है

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।