फ्लैट की सीलन से हैं परेशान? 47 लाख रुपये की राहत वाले फैसले ने दिखा दिया है नया रास्ता

नयी दिल्ली । जब आप किसी बिल्डर से फ्लैट या घर खरीदते हैं तो आपको उसके रखरखाव के लिए मेंटेनेंस चार्ज देना होता है। जरूरत पड़ने पर मरम्मत भी बिल्डर या सोसाइटी की जिम्मेदारी होती है लेकिन मेंटेनेंस चार्ज देने के बावजूद अगर सीलन या छत या फिर दीवारों से रिसाव से परेशान हैं तो बॉम्बे हाई कोर्ट का हालिया फैसला उम्मीद जगाने वाला है। कोर्ट ने हाउसिंग सोसाइटी को आदेश दिया है कि वह छत की रिसाव के लिए फ्लैट खरीददार को 47 लाख रुपये अदा करे। 12 प्रतिशत की दर से ब्याज अतिरिक्त होगा। सीलन या रिसाव ही क्यों, मेंटेनेंस को लेकर किसी भी तरह की परेशानी की हालत में ये फैसला नई राह दिखाने वाला है।
रिसाव से परेशान फ्लैट मालिक को 47 लाख रुपये देने का आदेश
सबसे पहले बात बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले की। कृष्णा बजाज नाम की एक महिला ने भारतीय भवन को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में 1992 में पिछले मालिक से एक फ्लैट खरीदा। लेकिन सोसाइटी ने मेंटेनेंस को नजरअंदाज किया जिस वजह से फ्लैट के छत से रिसाव होने लगा। इससे फर्नीचर समेत घर के सामानों को नुकसान हुआ। उसने हाउसिंग सोसाइटी से कई बार मरम्मत की गुहार लगाई लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। आखिरकार, फ्लैट मालिक ने 2004 में खुद के खर्च से दोबारा छत की ढलाई कराई जिसमें करीब 47 लाख रुपये खर्च हुए। को-ऑपरेटिव अपीलेट कोर्ट से महिला के पक्ष में फैसला आया। उसने सोसाइटी को छत ढलाई में आए खर्च को फ्लैट ओनर को देने का आदेश दिया। साथ में रिसाव की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के लिए अलग से 40 लाख रुपये देने का आदेश दिया।
इस फैसले के खिलाफ हाउसिंग सोसाइटी हाई कोर्ट पहुंची। हाई कोर्ट ने मरम्मत पर आए खर्च को फ्लैट मालिक को देने के आदेश को बरकरार रखा। सोसाइटी को 47 लाख रुपये 12 प्रतिशत साधारण ब्याज के हिसाब से देने का आदेश दिया। हालांकि, कोर्ट ने सोसाइटी को भी राहत दी। उसने निचली अदालत के फर्नीचर और अन्य सामानों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए 40 लाख रुपये अतिरिक्त देने के आदेश को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि फ्लैट मालिक यह साबित करने में नाकाम रहीं हैं कि उन्हें नुकसान हुआ है। जस्टिस एस. के. शिंदे की बेंच ने कहा कि छत सोसाइटी की संपत्ति है और उसे अच्छी हालत में रखना उसकी जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा कि अगर सोसाइटी ने छत की मरम्मत करा दी होती तो फ्लैट मालिक को 1992 से अबतक परेशान नहीं होना पड़ता।
क्या होता है मेंटेनेंस चार्ज
मेंटेनेंस चार्ज में आमतौर पर हाउसिंग सोसाइटी के रखरखाव का खर्च और बाद में मरम्मत के काम में आने वाला खर्च शामिल होता है। इस्तेमाल में लाए जा रहे कॉमन एरिया के रखरखाव और मरम्मत के लिए भी मेंटेंनेंस चार्ज वसूला जाता है। भारत में आमतौर पर मेंटेनेंस चार्ज 2 रुपये से लेकर 25 रुपये प्रति वर्ग फुट है। मेंटेनेंस की जिम्मेदारी सोसाइटी की होती है और अगर उसकी लापरवाही की वजह से किसी शख्स को नुकसान होता है तो इसका हर्जाना भी उसे ही देना होगा। पार्किंग, सीढ़ियों, बेसमेंट वगैरह की साफसफाई और रखरखाव की जिम्मेदारी हाउसिंग सोसाइटी की होती है।
जब सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को 33 करोड़ रुपये मेंटेनेंस चार्ज लौटाने को कहा
मेंटेंनेंस चार्ज वसूलने का मतलब है कि बिल्डर सही से रखरखाव करेगा। अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसे मैंटिनेंस चार्ज वसूलने का हक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में गुरुग्राम के एक बिल्डर को फ्लैट खरीदारों से वसूले गए 33 करोड़ मेंटेनेंस चार्ज को लौटाने का आदेश दिया। मामला एंबिएंस लगून अपार्टमेंट का था जो नैशनल हाईवे 8 पर बने एंबिएंस मॉल के पीछे है। इसमें 15 ब्लॉक हैं। 2002 में बिल्डर ने खरीदारी के वक्त फ्लैट बायर्स से वादा किया था कि वह हर 10 फ्लैट पर एक लिफ्ट देगा। लेकिन ज्यादातर ब्लॉक में वादे के मुताबिक 4 के बजाय सिर्फ 2 ही लिफ्ट उपलब्ध कराया गया। इसके खिलाफ 66 फ्लैट मालिकों ने कोर्ट का रुख किया। 19 मार्च 2014 को नैशनल कंज्यूमर डिस्पुट रिड्रेसल कमिशन ने फ्लैट खरीदारों के पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन बिल्डर इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के फैसले को बरकरार रखते हुए बिल्डर को आदेश दिया कि 2002 से फ्लैट बायर्स से मेंटेनेंस फीस के तौर पर जितनी भी राशि वसूली गई है, उसका 70 प्रतिशत उन्हें रीफंड किया जाए। ये राशि 33.38 करोड़ रुपये थी। इसका फायदा एंबिएंट लगून अपार्टमेंट के सभी 345 फ्लैट मालिकों को हुआ।
बिना ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट बिल्डर नहीं वसूल सकते मेंटेंनेंस चार्ज
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने इसी साल जनवरी में फ्लैट खरीददार के लिए बहुत बड़ी राहत देने वाला फैसला सुनाया। आयोग ने कहा कि बिना ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट के बिल्डर मेंटेनेंस चार्ज नहीं वसूल सकते। आयोग ने कहा कि जबतक सिविक अथॉरिटी से फ्लैट बायर्स को ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता तबतक उनसे मेंटेनेंस चार्ज की मांग करना उचित नहीं है। यह बात तब भी लागू होगी जब फ्लैट बायर पजेशन लेने के बाद अपने-अपने फ्लैटों में रहने भी लगे हों। जबतक ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता, मैंटिनेंस चार्ज नहीं वसूला जाएगा।
वादाखिलाफी करे बिल्डर तो क्या है रास्ता?
अगर बिल्डर ने वादाखिलाफी की है या गैरवाजिब पैसे वसूले हैं या उससे किसी अन्य तरह की शिकायत है तो इसे कहां और कैसे दर्ज कराएं? इसका जवाब है रेरा या फिर उपभोक्ता आयोग में। फ्लैट खरीददार बिल्डर के खिलाफ रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी (RERA) में शिकायत दर्ज करा सकता है। लेकिन अगर फ्लैट 2016 में रेरा कानून लागू होने से पहले खरीदा गया है तो उसे कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट, 1986 के तहत ही शिकायत दर्ज करानी पड़ेगी।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

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