माताओं से प्रेम करना अच्छी बात है मगर उनकी जवाबदेही भी तय हो

जीवन में क्या सब कुछ पूरी तरह सकारात्मक हो सकता है…क्या कोई भी चीज परफेक्ट हो सकती है ? हमारी समझ से कोई भी चीज, कोई भी रिश्ता परफेक्ट नहीं होता…अच्छे और बुरे पक्ष हर बात के होते हैं मगर हम अपनी संवेदना को चोट नहीं पहुँचाना चाहते इसलिए बुरे पक्ष को नकारात्मक कहकर हवा में उड़ा देना चाहते हैं । मई और जून का महीना पाश्चात्य कैलेंडर के अनुसार माता और पिता को समर्पित है..एक दिन इनके नाम ही होता है । सन्दूकों से पुरानी तस्वीरें निकलती हैं और स्टेटस पर सज जाती हैं, व्यवहार में भले ही आचरण अलग हो । बाजार का जादू ऐसा है कि हर कोई इस रिश्ते पर जमकर खर्च करना चाहता है..आज इस तरह के दिवस फैशन स्टेटमेंट की तरह हैं और एक जैसी नीरस चर्चा हमारी जिन्दगी का हिस्सा बन गयी है ।
कहा गया है कि माता कुमाता नहीं हो सकती मगर गहराई में जाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि सन्तान मोह विशेषकर पुत्र मोह की आड़ में माताएं खेल खेलती हैं । पुराने जमाने में जब रनिवास और हरम हुआ करते थे, बहुपत्नीवाद था तो अपने बच्चों को सिंहासन पर बैठाने के लिए दूसरी रानी के बच्चों की हत्या से भी उनको हिचक नहीं होती थी…रामायण में भी भरत के लिए कैकयी ने राम का वनवास माँगा था । माँ की ममता ठीक है मगर ममता की पराकाष्ठा क्या किसी और के अधिकारों पर चलकर सन्तान की इच्छा पूर्ति करना भर है । शादी के पहले बेटों के लिए बेटियों को दबाना, देवरानियों और जेठानियों से लेकर ननद के बच्चों को दबाना, अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए तंज कसना यह महिलाओं की आदत है । बच्चा किसी से लड़कर आए, किसी को पीटकर आए, चोरी करके आए या लड़की छेड़कर आए..माताएं उनकी गलतियों को नजरअन्दाज ही नहीं करती बल्कि कवर अप करने के लिए खड़ी हो जाती हैं । क्या यही ममता है..जो माताएं अपने बच्चों की गलतियों को छुपाती हैं, वह आगे चलकर अपराधी ही बनते हैं…किसी और को पीटने वाले बच्चों का गुस्सा जब नियंत्रित नहीं किया जाता तो वह हिंसक ही बनता है और फिर उसे अपनी ताकत का ऐसा नशा हो जाता है कि वह हर किसी से मारपीट करता है, छोटे या बड़े भाई -बहनों को मारता है, फिर पत्नी और बच्चों को मारता है और एक दिन हत्यारा भी बन जाता है तो यह गलती किसकी है कि उस बच्चे को पहली बार ही नियंत्रित नहीं किया गया..निश्चित रूप से वह अधिकतर मामलों में कोई स्त्री ही होती है । जब लड़की किसी लड़की का पीछा करते हैं…उनको घूरते हैं, छेड़ते हैं तो वह भी एक दिन में नहीं होता, ऐसे लड़कों पर नजर रखने वाला, उनको समझाने वाला कोई नहीं होता…जिस अनुशासन से लड़कियों को पराया धन कहकर आत्मनिर्भर बनाया जाता है, लड़कों की परवरिश में वह अनुशासन नहीं होता । लज्जा लड़कियों का गहना है तो क्या लड़कों को बेशर्म होना चाहिए ?
मेरे मित्र अक्सर कहते हैं कि मैं नकारात्मक होकर सोचती हूँ मगर मैं वही सोचती हूँ जो मुझे दिखता है । जिस मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दबाव के साथ लड़कियाँ बड़ी होती हैं…लाख दबावों के बाद भी लड़कों पर वह दबाव नहीं होता । लड़कों की समस्याएं होती हैं, वे सैंडविच भी बनते हैं मगर उनको दुलार भी खूब मिलता है । उनको धमकियाँ नहीं मिलतीं कि सास – ससुर क्या कहेंगे या करेंगे..माँ और पत्नी की लड़ाई में अधमरे होते भी हैं तो अन्ततः केन्द्र में वही रहते हैं और जो होता है, उनकी भलाई के लिए होता है । भावनात्मक ब्लैकमेलिंग का खेल माताएं ही अधिक खेलती हैं…और तंज भी उनके तैयार रहते हैं । बहनों को कई तरीके पराया बताया जाता है …यहीं राज है ..ससुराल जाओगी तो पता चलेगा…बैग उठाकर चल देती हो…हम तो यहाँ नौकर बैठे हैं ।
घी मत खाओ, तुम्हारे भाई के लिए रखा है…कमजोर हो गया है …बहनों को भाई का अटेंडेंट माताएं ही बनाती हैं…घर में भोजन से लेकर कमरे और मानसिक और आर्थिक स्तर पर अपनी ही बेटियों के साथ भेदभाव माताएं ही करती हैं…आखिर मातृत्व के नाम पर किस तरह की माताओं को सेलिब्रेट किया जा रहा है ?
क्या यह सही समय नहीं है कि माताओं की जवाबदेही तय की जाए क्योंकि सन्तान को तो अन्ततः देश का नागरिक ही बनना है । कहाँ से आते हैं ऐसे अपराधी जो सीरियल किलर बनते हैं, ठग बनते हैं…हत्यारे बनते हैं…यह एक दिन में तो होता नहीं है…क्या बचपन से ही इनको रोका जाता तो यह अपराधी बनते?
माताओं से प्रेम करना, उनकी सराहना करना, ऐसी माताओं को पूजना..जो बच्चों के जीवन संघर्ष में साथ खड़ी रहती हैं…सही है मगर क्या हम उन माताओं की भी इज्जत करें जो सन्तान मोह के कारण किसी और बच्चे का भोजन छीन लें…किसी और का जीवन नष्ट कर दें..?
अतिरेक को पीछे छोड़कर यह तय करना जरूरी है कि सम्बन्धों के किस रूप को हम प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि सम्बन्ध किसी भी रूप में आगे चलकर समाज और देश के विकास को प्रभावित करते हैं और इसलिए किसी भी सम्बन्ध को मानवता और समानता के आधार पर आगे जाना होगा ।

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