मानवीय संस्कृति के लेखक हैं प्रेमचंद

‘आजादी के 75 साल: प्रेमचंद का भारत’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

मिदनापुर। राजा नरेंद्र लाल खान महिला महाविद्यालय (स्वायत्त) के हिंदी विभाग द्वारा ‘आज़ादी के 75 साल: प्रेमचंद का भारत’ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत कॉलेज के संगीत विभाग के अध्यापक एवं छात्राओं द्वारा संगीत प्रस्तुति के साथ हुई। कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रेणु गुप्ता ने स्वागत वक्तव्य देते हुए बताया कि हमारे कॉलेज को देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में शामिल किया गया है।हमारे कॉलेज की प्रिंसिपल के सहयोग से हम निरंतर प्रगति कर रहे हैं।प्रेमचंद का साहित्य भारतीयता का साहित्य है। प्रथम सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए रेवेंशा विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर अजय पटनायक ने कहा कि आजादी के75वर्षों में देश ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काफी विकास किया है।प्रेमचंद के सपनों को पूरा करने का भरपूर प्रयास आज भी जारी है।। बीज वक्तव्य देते हुए विश्वभारती शांतिनिकेतन के पूर्व प्रोफेसर हरिश्चंद्र मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य हमें गलत चीजों का विरोध करना सिखलाता है।प्रेमचंद ने समाज के बड़े हिस्से को अपनी रचना के केंद्र में रखा है।वे हमें नैतिक मूल्यों से जोड़ते हैं।इस अवसर पर हिंदी विश्वविद्यालय हावड़ा के उपकुलपति प्रोफेसर दामोदर मिश्र के वक्तव्य का वाचन शोधार्थी मधु सिंह द्वारा किया गया। बतौर वक्ता विद्यासागर विश्वविद्यालय, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में जीवन की जो छवियां हैं वे हमें बेचैन करती हैं।आज भी दलित हाशिये पर हैं।प्रेमचंद ने ऐसे भारत का सपना नहीं देखा था,जहां मटके का पानी पीने के लिए एक दलित बच्चे को मरना पड़ा। खड़गपुर कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ पंकज साहा ने कहा कि प्रेमचंद के भारत को देखने के लिए हमें प्रेमचंद को सिर्फ पढ़ना ही नहीं होगा उसे जीवन में भी उतारना होगा। इस सत्र में डॉ. प्रकाश अग्रवाल और रूपेश कुमार यादव ने आलेख पाठ किया। इस सत्र का संचालन अतिथि प्रवक्ता रवि पंडित ने किया। दूसरे सत्र की शुरुआत कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की छात्रा प्रतिभा कारक द्वारा राष्ट्रप्रेम पर आधारित गीत के साथ हुई। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए विद्यासागर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि आजादी के सात दशक बाद भी प्रेमचंद के सपनों का भारत नहीं बन पाया।गरीबों, दलितों, वंचितों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिली।वे राजनीतिक परिवर्तन के साथ सामाजिक क्रांति की अपेक्षा रखते हैं ताकि मानवीय संस्कृति का विकास हो सके। बतौर वक्ता विद्यासागर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि प्रेमचंद के पात्र जीवन में छोटे-छोटे संघर्षों के बीच अपनी मुक्ति का स्वप्न देखते हैं।वे भारतीय जनमानस के लेखक हैं। मिदनापुर ऑटोनोमस कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रणजीत सिन्हा ने कहा कि प्रेमचंद हिंदी और उर्दू समाज में समान रूप से स्वीकृत हैं।उन्होंने भारतीय समाज को खंड-खंड में देखने के बजाय समग्रता में देखा। खड़गपुर कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. संजय पासवान ने कहा कि प्रेमचंद वंचितों के लेखक हैं। इस सत्र में राकेश चौबे, मधु सिंह एवं सोनम सिंह ने आलेख पाठ किया। इस अवसर पर अंकिता द्विवेदी ने काव्य पाठ किया। इस अवसर पर कॉलेज स्तर पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता के विजयी प्रतिभागी प्रथम स्थान के लिए संयुक्त रूप से रुथ कर एवं नेहा शर्मा को द्वितीय और तृतीय के लिए क्रमशः पायल गुप्ता और लता मेहरा को पुरस्कृत किया गया। इस सत्र का संचालन अतिथि प्रवक्ता पंकज सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका सुमिता भकत ने किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

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