मालवा की धरती से मिले औरंगजेब के जमाने के सिक्के

363 साल पहले ढाले गये हैं सिक्के
एक साल बाद बेचने निकले तो पकड़ाए
शाजापुर : ऐतिहासिक धरोहरों को अपने अंदर छुपाए बैठी मालवा की धरती से अब राजा-महाराजाओं का खजाना भी निकलने लगा है। 163 से ज्यादा सोने-चांदी के सिक्के शाजापुर के ग्राम पचोला के मजदूरों को नींव खोदते समय एक साल पहले मिले थे। इस खजाने का तीनों ने बंटवारा कर अपने-अपने घरों में गड्ढा कर छिपा दिए, ताकि किसी को भनक न लगे लेकिन गत बुधवार को जब वे इसे बाजार में बेचने के इरादे से निकले तो पुलिस ने उन्हें दबोच लिया। मजदूरों के पास मिले सिक्के देख हर कोई दंग रह गया।
यह साधारण सिक्के नहीं, बल्कि औरंगजेब के जमाने के बताए जा रहे हैं। इन सिक्कों की पड़ताल अश्विनी शोध संस्था महिदपुर के मुद्रा विशेषज्ञ डॉ.आर.सी. ठाकुर से कराई गयी तो उन्होंने बताया कि मालवा की धरती से यह सिक्के मिलना अपने आप में दुर्लभ है।
पुलिस ने मौके से जितेंद्र के पास से 60 चांदी के सिक्के व 7 सोने तथा किशन के पास से 60 चांदी और 6 सोने के सिक्के जब्त किये जबकि संतोष के पास से 30 चांदी के सिक्के मिले। संतोष, किशन और जितेंद्र को मिला खजाना, पुलिस की कहानी में एक साल पहले मिलना बताया जा रहा है। पुलिस के अनुसार संतोष के पास से सिर्फ 30 सिक्के मिले, संतोष के अनुसार उसके खुद के मकान की नींव खुदाई में यह सिक्के एक मिट्टी के बर्तन में मिले थे। पुलिस द्वारा पकड़े जाने के डर से तीनों ने अपने अपने घरों में ही गड्ढा कर सिक्के गाड़ दिए थे।
शाजापुर जिला ऐतिहासिक नजरिए से भी महत्वपूर्ण है। पुराविद् डॉ रमण सोलंकी के अनुसार इसे बौद्ध पथ माना जाता है। यानी इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का काफी वर्चस्व रहा है। इसके प्रमाण कुरावर में बौद्ध स्तूप के अवशेष मिलने और सारंगपुर व मक्सी में भी इस तरह के प्रमाण मिलते हैं। शाजापुर को मुगल शासक शाहजहां से जोड़ा जाता है। औरंगाबाद टकसाल की मुद्राएं शाजापुर पहुंचने का कारण उज्जैन से अरबसागर तक व्यापारी आते-जाते थे। व्यापारियों का मार्ग शाजापुर होकर ही था। उज्जैन से शाजापुर होकर विदिशा होते हुए भरूच से अरब सागर की ओर व्यापारियों का आना-जाना था। उज्जैन रत्नों और मसालों की मंडी था। खासकर मोतियों का कारोबार उज्जैन से होता था। इसलिए उज्जयिनी के सिक्कों पर क्रास वाला व्यापारिक चिह्न था चारों दिशाओं के प्रतीक क्रास के चारों कोनों पर गोलाकार चिह्न हैं। उज्जैन के अरब सागर वाले पश्चिमी मार्ग में शाजापुर आता था।
363 साल पहले औरंगाबाद टकसाल में ढले
यह सिक्के 1658 से 1707 (हिजरी सन् 1068 से 1158) के हैं। इस पर 12 अंक लिखा है, जो महीने का प्रतीक है। इस तरह के सिक्के उज्जैन जिले के रूनीजा में सालों पहले स्व. डॉ. श्रीधर वाकणकर ने भी खोजे थे। यह सिक्के औरंगाबाद टकसाल के होने से खास है। एक सिक्के की कीमत लगभग 50 हजार रुपए हो सकती है। सोने के सिक्कों का वजन 142.3 ग्राम तक है, वहीं चांदी के 150 कुल सिक्कों का वजन एक किलो 710 ग्राम है। चांदी के सिक्कों की कीमत 1 लाख 12 हजार रुपए के लगभग तो सोने के एक सिक्के की कीमत 50 हजार यानी कुल 13 सिक्कों की कीमत 6 लाख 50 हजार रुपये कीमत है।

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