मिट्टी-गुड़ से अद्वितीय घर बनाते हैं यह आर्किटेक्ट, हजारों को दे चुके हैं प्रशिक्षण

आज देश के अधिकांश शहर तेजी से कंक्रीट के जंगल के रूप में तब्दील होते जा रहे हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता बढ़ती जा रही हैं, बल्कि वास्तुकला से संबंधित हमारी पहचान भी धूमिल होती जा रही है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि आज हमारे पाठ्यक्रमों में परंपरागत भारतीय वास्तुकला के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है। इसी को देखते हुए तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में रहने वाले आर्किटेक्ट बिजू भास्कर और उनकी पत्नी सिंधू भास्कर ने 2009 में ‘थनल नैचुरल बिल्डिंग अवेयरनेस ग्रुप’ की स्थापना की, इसके तहत वह न सिर्फ प्राकृतिक तरीके से घर बनाते हैं, बल्कि इस व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए हजारों लोगों को प्रशिक्षित भी कर चुके हैं।
भास्कर ने पिछले एक दशक में 60 से अधिक वर्कशॉप किए हैं और जरूरतमंदों के लिए बिना किसी शुल्क के 10 से अधिक संरचनाओं का निर्माण किया है। उन्होंने अब तक जितने भी प्रोजेक्ट किए हैं, सभी के सभी बेहद खास हैं, क्योंकि भास्कर ने उन्हें सीमेंट के एक कतरे का भी इस्तेमाल करने के बजाय मिट्टी, गुड़, हल्दी, नीम, चूना, लकड़ी, पत्थर जैसे स्थानीय पदार्थों से आधुनिक सुविधाओं के अनुकूल बनाया है। उनके कुछ खास प्रोजेक्ट के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं:
फार्मर्स हाउस – 2017
बिजू भास्कर ने इस घर को केरल के अट्टापारी के किसान जयन के लिए बनाया है। इसके बारे में वह कहते हैं, “जयन की जमीन मुख्य सड़क से काफी दूर है। इसलिए हम निर्माण सामग्रियों को बाहर से नहीं मंगा सकते थे। 1020 वर्ग फीट में बने इस घर को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध बांस, पत्थर, मिट्टी से बनाया गया है। इसके लिए सिर्फ चूना, टेराकोटा टाइल्स को बाहर से मंगाया गया था।
केरल के अट्टापारी में बना जयन का घर
वह आगे बताते हैं, “इस घर में 2 बेडरूम, एक हॉल, किचन और बाथरूम है। इसकी छत दो लेयर में है। बीच वाली छत को बांस से और ऊपरी छत को पुराने टेराकोटा टाइल से बनाया गया है। वहीं, इसकी दीवारों को 6-6 इंच के दो भागों में बनाया गया है, और बीच में बांस दिए गए हैं, जिससे घर में गर्मी का कोई असर नहीं होता है। इसे बनाने में महज 4 लाख रुपए खर्च हुए, जिसे सीमेंट से बनाने में दोगुना खर्च होता।”
कम्युनिटी सीड बैंक – 2018
भास्कर बताते हैं, “इस कम्यूनिटी सीड बैंक को तमिलनाडु के करूर में बनाया गया है। इसे देशी किस्म के बीजों को संरक्षित के लिए बनाया गया है। यह 1400 वर्ग फीट के दायरे में है और इसे बनाने में 20 लाख रुपए खर्च हुए।” इस सामुदायिक केन्द्र की दीवारों को मिट्टी से बनाया गया है, जिसकी मोटाई 1.5 फीट है। इसकी पहली मंजिल को ताड़ के पेड़ों से, जबकि दूसरे छत को टेराकोटा टाइल से बनाया गया है।
तमिलनाडु के करूर में बना सीड बैंक
भास्कर बताते हैं, “यहाँ किसानों के बैठने, बीजों को तोलने और सूखाने के लिए तीन तरफ से बड़े-बड़े बरामदे हैं। किसान बीजों को आसानी से देख सकें, इसके लिए सामने एक कमरा बनाया गया है और बीजों को रोशनी से बचाने के लिए एक कमरा पीछे है। इसके स्तंभों को पत्थर से बनाया गया है, जबकि स्थानीय कारीगरों ने यहाँ काफी नक्काशी का भी काम किया है।”
प्रोजेक्ट अर्थ बैग – 2016
प्रोजेक्ट अर्थ बैग के तहत बिजू भास्कर ने खुद अपने ही घर को बनाया। इसकी खासियत यह है कि इसकी दीवारों को जूट के बोरों में मिट्टी भर कर बनाया गया है, जबकि इसकी छत को चूना और टेराकोटा टाइल को बनाया गया है। साथ ही, यहाँ एक जल संरक्षण प्रणाली को भी विकसित किया गया है।


जूट के बोरों से बना बिजू भास्कर का घर
इसके बारे में भास्कर कहते हैं, “इस घर को हमने 1000 जूट के बोरे में रेतीली मिट्टी भर कर बनाया है। मिट्टी में चूना, गन्ने का रस आदि मिलाया गया है। इसे बनाने में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं हुई। शुरूआत में इसकी छत को घास से बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे चूना और टेराकोटा टाइल के साथ बनाया गया।”
घर को घुन से बचाने के लिए बैग पर नीम, हल्दी, आदि का छिड़काव किया गया है। एक और खास बात यह है कि घर के सूखने के बाद इसकी मिट्टी में नीम, हल्दी, कैक्टस और एलोवेरा मिलाकर पुताई की गई, ताकि इसे घुन से बचाया जा सके। इसके अलावा, इसकी छत को दो स्तरों में बनाया गया है – पहला चूने से, जबकि दूसरा – टैराकोटा टाइल से। जिसकी वजह से घर में तापमान काफी नियंत्रित रहता है। इस तरह 700 वर्ग फीट में बने इस घर को बनाने में महज 5.50 लाख रुपये खर्च हुए।
विलेज मड किचन – 2019
इसके तहत थनल कैंपस में आने वाले लोगों के लिए एक रसोई घर का निर्माण किया गया। इसमें आर्किटेक्टचर से संबंधित प्रयोग करने की भी जगह है। इस कड़ी में भास्कर कहते हैं, “2018 में हमारे यहाँ बाढ़ आई थी। इसलिए हमने 450 वर्ग फीट में इसकी संरचना को को बांस और सुरखी (जली मिट्टी) से इस तरीके से बनाया है कि भविष्य में बाढ़ आने पर भी सिर्फ मिट्टी ही बहेगी, ढांचा बचा रहेगा। इसमें खाना बनाने के दौरान धुएं से बचने के लिए एक चिमनी भी लगाया गया है, जिससे धुआँ सीधे बाहर निकल जाए। वहीं, हमने यहाँ एक मड ओवेन भी बनाया है, जिसमें रोटी बनाई जा सकती हैं।”
कैसे आया थनल को स्थापित करने का विचार
बिजू भास्कर बेंगलुरु, चेन्नई, कोच्चिन जैसे कई बड़े शहरों में रह चुके हैं। लेकिन, धीरे-धीरे उनका रुझान की वादियों में आकर बस गए। इसके बाद उन्होंने राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के गाँवों का दौरा कर भारतीय वास्तुकला के संबंध में जानकारियों को इकठ्ठा किया। इसके बाद, साल 2009 में उन्होंने भारतीय वास्तुकला पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए थनल, जिसका हिन्दी अर्थ है – परछाई, अध्यात्म की ओर बढ़ने लगा, इसी क्रम में 15 साल पहले वह तिरुवन्नामलाई की स्थापना की। फिलहाल बिजू, थनल के तहत 2 दिनों से लेकर 2 वर्ष का पाठ्यक्रम चलाते हैं और उन्होंने अब तक 1000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षण किया है। इसके साथ ही, उन्होंने अपने ज्ञान को अधिकतम लोगों तक पहुँचाने के लिए अपना यूट्यूब चैनल भी लॉन्च किया है।
साभार – द बेटर इंडिया

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