लेडीज फर्स्ट

बलवंत सिंह गौतम

महिला दिवस के मौके पर समस्त नारी शक्ति को प्रणाम करता हूँ ।
“गति काल चक्र में तुझसे है
ज्योति दिनकर में तुझसे है
कदमों तले रौंद सको जिसको
हैं नही तू वो फुलवारी…
तू ही भक्ति हैं, तू ही शक्ति हैं
तू ही जीवन दे सकती हैं

है ये सारी सृष्टि तुझसे
*तू ब्रह्माण्ड कोख में रखती हैं..”…..

लेडीज फर्स्ट

जानते हैं हम पुरुष को सबसे ज़्यादा किस शब्द से टीस होती हैं ? वह हैं “लेडीज़ फर्स्ट “! हमें लगता हैं हर सुनहरा मौका पहले महिलाओं को मिलता हैं क्योंकि जमाना “लेडीज़ फर्स्ट” का हैं।
हर बात में सब बोलते है “लेडीज़ फर्स्ट”। टिकट काउन्टरों में “लेडीज़ फर्स्ट,” बैंकों में भी “लेडीज़ फर्स्ट”, दुकानों पर भी “लेडीज़ फर्स्ट”, मतलब की हर जगह “लेडीज़ फर्स्ट”। वे सोचते हैं होटल में साथ खाने पर बिल देते समय “लेडीज़ फर्स्ट” क्यों नहीं? जब बसों में खड़े होने की बारी आती हैं तब “लेडीज़ फर्स्ट” क्यों नहीं कहती ? जब सिलेंडर उठाने के बारी आती है तो “लेडीज़ फर्स्ट” क्यों नहीं कहती? सच में ये औरतें बेहद अजीब होतीं हैं!
रात को पूरी नींद नहीं सोती हैं। बीच बीच में जागती रहती हैं । टटोलती रहती हैं रात भर – खिड़की-दरवाजों की कुंडियां, बिजली का स्विच, कभी जाड़ों की रातों में बच्चों की रज़ाई, कभी बुख़ार में तपते बच्चों का बदन, इम्तिहानों के समय बच्चों का मन, रसोई में दही, राजमा- चने भिगोना और ना जाने क्या-क्या ? सुबह जब जागती हैं तो पूरा नहीं जागती । आधी नींद में ही भागती रहती हैं। दूधवाला, पेपर वाला, पौधों में पानी , बच्चों का टिफ़िन, जल्दी जल्दी में आधी नहाई ,पूजा का दीपक हाथों में, पर नज़र चूल्हे पर चढ़े दूध पर होती हैं। अपनी ठंडी होती चाय को निहारती हुई ढूँढने लगती हैं बच्चों के मोजे, गुमशुदा बिजली का बिल, दादी माँ की ऐनक, दादाजी का दवाइयों वाला पर्चा| और फिर एक दिन, उसकी आँखों में कभी जुगनू की तरह चमकने वाले स्वप्न ईंधन हो जाते हैं,वो ईंधन जिसे जलाकर वो मकान को घर बनाती हैं। सच में ये औरतें बेहद अजीब होतीं हैं!
एक सवाल का जवाब दीजियेगा ! अगर सच में “लेडीज़ फर्स्ट” का ज़माना हैं तो हमारी माएँ हमेशा सब के बाद में खाना क्यों खाती हैं? “लेडीज़ फर्स्ट” को तो मुझे नहीं मालूम पर “लेडीज़ फास्ट”ज़रूर होती हैं। सच में ये औरतें बेहद अजीब होतीं हैं! अगर आज हम कहते हैं स्त्री प्रथम या “लेडीज फर्स्ट” तो इसके पीछे भी प्राचीन भारतीय संस्कृति ही हैं । नारी को ईश्वर की सबसे सुंदर कृति कहा जाता हैं । कहते हैं कि नारी में ईश्वर स्वयं वास करते हैं। ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। चाहे भगवान राम हों, गणेश- कार्तिकेय हों, कृष्ण हों या गुरुनानक हों, सदैव माँ के रूप में कौशल्या, पार्वती, यशोदा और तृप्ता देवी की आवश्यकता पड़ती है। सनातन धर्म में माता का स्थान पिता से दस गुना अधिक होता है। माता सीता एक पुत्री, अर्धांगिनी एवं वधू के रूप में आदर्श है । अगर भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम है तो इसका कारण भी भगवती सीता ही हैं। नारी को अर्धांगिनी भी कहा जाता हैं। नर-नारी समानता ईश्वरीय आदेश हैं । भवानी शंकर जब एकाकार होते हैं तो अर्धनारीश्वर बनते है। सभी युगल देवी-देवों के नाम में प्रायः पहले देवी का ही नाम आता है। राधा कृष्ण,सीता-राम, लक्ष्मी-नारायण, गौरी-शंकर।हमारी संस्कृति हमें सिखाती है, “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्रदेवता” अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। आइए आज महिला दिवस के मौक़े पर हम सब एक संकल्प लें, “लेडीस फर्स्ट” की अवधारणा को धरातल पर साकार करने का ।
महिला दिवस के मौके पर समस्त नारी शक्ति को प्रणाम करता हूँ
“गति काल चक्र में तुझसे है
ज्योति दिनकर में तुझसे है
कदमों तले रौंद सको जिसको
हैं नही तू वो फुलवारी…
तू ही भक्ति हैं, तू ही शक्ति हैं
तू ही जीवन दे सकती हैं
है ये सारी सृष्टि तुझसे
*तू ब्रह्माण्ड कोख में रखती हैं..”…..
चलिये आज सुबह की चाय चुस्की महिलाओं के नाम करते हैं ।
अपने हाथों से चाय बनाकर ले चलते हैं अपनी माता, बहन, बेटी या फिर हमसफ़र के लिए, और कहते हैं “लेडीज़ फर्स्ट” !!

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