‘ल’ नहीं बोल पाते थे सिंधु घाटी सभ्यता के लोग, भाषा को लेकर हुए बड़े खुलासे

इस्लामाबाद : भाषा सिर्फ संचार का माध्यम ही नहीं है। इतिहासकारों के लिए यह हमेशा प्राचीन सभ्यताओं और समाज के ढांचे को समझने का एक अहम साधन रही है। हाल ही में हुए एक भाषाई अध्ययन से जो परिणाम सामने आए हैं वह प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता और द्रविड़ों के बीच के संबंधों को गहरा करते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप में फैली सबसे पुरानी शहरी सभ्यता है। नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चलता है कि इस सभ्यता की आबादी का एक बड़ा हिस्सा पैतृक द्रविड़ भाषाएं बोलता था।
भाषा अभी तक बनी हुई है रहस्य
सिंधु घाटी सभ्यता अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से के दस लाख किलोमीटर में फैली हुई थी। यह ताम्रपाषाण सभ्यताओं में सबसे ज्यादा फैली हुई सभ्यता थी। 1926 में इसकी खोज के बाद से ही सभ्यता के पुरातत्व स्थल हमेशा से ही शोधकर्ताओं के लिए एक दिलचस्प विषय रहा है। हालांकि इस सभ्यता में लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को अभी तक समझा नहीं जा सका है।
एक जैसे पाए गए कुछ अक्षर
एक सॉफ्टवेयर डेवलपर और शोधकर्ता बहता अंशुमाली मुखोपाध्याय ने भाषाई और ऐतिहासिक सबूतों का विश्लेषण किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि प्राचीन पर्सिन अभिलेखों के कुछ शब्द प्रोटो-द्रविड़ भाषा से कैसे मेल खाते हैं। उदाहरण के लिए फारसी अभिलेखों में हाथी के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द pri, pru, मूल रूप से ‘प्लू’ से लिए गए हैं, जो स्तनपायी के लिए एक प्रोटो-द्रविड़ शब्द है।
कई भाषाएं बोले जाने का दावा
बहाता ने वायर को बताया कि प्राचीन ईरानी भाषाओं ने इस शब्द को अपनाया और इसे संशोधित किया क्योंकि वे ‘L’ अक्षर का उच्चारण ‘R’ के रूप में करते थे। वर्तमान समय में, सिंधु घाटी महाद्वीप के एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई है और विभिन्न प्रकार की भाषाओं का समर्थन करती है, जिसमें ये हिंदी, पंजाबी, सिंधी, मारवाड़ी, गुजराती, शिना, खोवर, कोहिस्तान, बलूची, पश्तो, दारी और वाखी शामिल हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि खेती के प्रसार सेपहले करीब 12,000 से 20,000 भाषाएं बोली जाती थीं।

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