विभाजन पर आधारित डिजिटल संग्रहालय की कोलकाता में होगी शुरुआत

कोलकाता। बंगाल की राजधानी कोलकाता में अगले सप्ताह तक देश के विभाजन पर आधारित एक डिजिटल संग्रहालय की शुरुआत होगी। इस संग्रहालय में भारत और बांग्लादेश के लोगों के बीच के गहरे संबंधों को दर्शाने वाली कला और साहित्य जगत की कृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा। संग्रहालय में प्रदर्शित की जाने वाली कृतियां विभाजन की त्रासदी और उसके परिणामस्वरूप सीमा के दोनों ओर लोगों को हुईं परेशानियों और उनकी पीड़ा को भी दर्शाएंगी।
कोलकाता पार्टिशन म्यूजियम प्रोजेक्ट (केपीएमपी) का नेतृत्व कर रहीं रितुपर्णा राय ने कहा कि संग्रहालय का निर्माण करने का उद्देश्य विभाजन के दौरान पूर्वी भारत के बंगाल के अनुभव के अलावा विभाजन के बाद लोगों के जीवन और उनकी परिस्थितियों को यथासंभव व्यापक रूप से यादगार बनाना है। विभाजन संबंधी विषयों पर शोध करने वालीं राय ने कहा, इस परियोजना के जरिए हम भी समान रूप से विभाजन को लेकर किए जाने वाले विचार-विमर्श को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि विभाजन से हम बिछडऩे, हिंसा और लोगों के अपना घर छोड़कर जाने की पीड़ा को समझते हैं।
बीते सात दशकों से लगातार विभाजन और उसके परिणामों को लेकर चर्चा की जाती रही है। हम समझते हैं कि ऐसा क्यों होता है। लेकिन, अब इससे बाहर निकलने का समय भी आ गया है। उन्होंने कहा, विभाजन का एक और पहलू निरंतरता भी है। मौजूदा समय में हम जिस विभाजनकारी दौर में रह रहे हैं, उसके मद्देनजर हम विभाजन को भी याद रखना चाहते हैं।
रितुपर्णा राय के मन में यूरोप में रहने और वहां युद्ध स्मारकों और संग्रहालयों के दौरे के दौरान विभाजन को लेकर एक संग्रहालय स्थापित करने का विचार अंकुरित हुआ। उन्होंने कहा कि उपनिवेशवाद के दौर के बाद बंगाल और बांग्लादेश की परिस्थितियां पूरी तरह से अलग रही हैं। उन्होंने कहा, हम इस बात से इन्कार नहीं कर रहे हैं कि विभाजन हुआ था और उसके कुछ कारण थे। हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम जर्मनी की तरह फिर से एकजुट हो जाएंगे। हम विभाजन को याद रखेंगे और इससे जुड़े सभी सिद्धांतों को भी सामने रखेंगे।
राय ने कहा कि विभाजन के बावजूद बंगाल और बांग्लादेश में भाषा, साहित्य, खान-पान, कला और लोगों के पहनावे तथा रहन-सहन में काफी समानता है। उन्होंने कहा कि विभाजन के समय भारत में केंद्र की तत्कालीन सरकार ने पंजाब और बंगाल के साथ अलग-अलग व्यवहार किया। उनका मानना है कि विभाजन के बाद पंजाब में आए लोगों को बेहतर सुविधाएं और मुआवजा दिया गया जबकि पूर्वी भारत की ओर सरकार ने उतना ध्यान नहीं दिया।
राय ने कहा, यहूदियों का नरसंहार और भारत का विभाजन एक ही दशक में हुआ था। होलोकास्ट को समर्पित बहुत सारे स्मारक हैं, ऐसा क्यों है कि हमारे पास विभाजन का कोई सार्वजनिक स्मारक नहीं है? हमारे पास इतिहास लेखन, साहित्य, फिल्में हैं लेकिन सार्वजनिक स्मारक नहीं था?
डिजिटल विभाजन संग्रहालय केपीएमपी और वास्तुकला शहरीकरण अनुसंधान (एयूआर) के सहयोग से निर्मित किया जा रहा है। टाटा स्टील भी इसमें योगदान दे रहा है।

 

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