विवाह मानवीयता का परिशोधन और परिवर्धन है :डॉ. सोमा बंदोपाध्याय

कोलकाता । राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन महिला इकाई कोलकाता द्वारा आयोजित संगोष्ठी में “वर्तमान समय में विवाह के बदलते स्वरूप” विषय पर देश के महत्वपूर्ण साहित्यविदों, पत्रकारों, नाट्यकार ने अपने वक्तव्य रखे। विषय प्रवेश करते हुए छपते छपते हिंदी दैनिक कोलकाता और ताजा टीवी के निदेशक वरिष्ठ संपादक विश्वंभर नेवर ने विषय प्रवेश करते हुए प्रमुख आंकड़ों को रखते हुए भारत के हिंदू विवाह, संस्कार, इतिहास को बताते हुए अरैंज मैरिज से लेकर कानूनी रुप से स्वीकृत विवाह और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बात रखी। विश्वंभर नेवर ने कहा कि वर्तमान समय में विवाह के स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन हैं जो समाज के ढांचे को भी तेजी से बदल रहे हैं ।
व्यंगकार और साहित्यकार विशिष्ट वक्ता नुपूर अशोक ने बताया कि विदेश और भारत की मानसिकता में बहुत अंतर है। अब विवाह में दिमाग का रोल अधिक है दिल का कम। पेशे से शिक्षिका और सक्रिय रूप से कई संस्थानों से जुड़ीं दुर्गा व्यास ने भारतीय संस्कृति में विवाह संस्कार के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लिव इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह को विवाह माना ही नहीं।
प्रसिद्ध अभिनेत्री, नाट्यकार, नाट्य लेखिका, युवाओं से जुड़ी कवयित्री उमा झुनझुनवाला ने अपने वक्तव्य में कहा कि पिछले दो वर्षों में कोरोना काल से विवाह की सोच में बहुत परिवर्तन हुए।नए संस्कार अब टुकड़ों में आ रहे हैं।
वर्तमान समय में विवाह के बदलते स्वरूप विषय को समसामयिक विषय बताते हुए कहा कि भारत विविधताओं का देश है। आज युवक-युवतियाँ अपनी इच्छा से सभी कार्य कर रहे हैं वे अपना स्थान स्वयं बनाते जा रहे हैं।
ओडिशा महिला आयोग की पूर्व सदस्य वरिष्ठ वकील नम्रता चढ्ढा ने कहा कि भारत में विवाह के विभिन्न व्यक्तिगत विचार और कोर्ट में तलाक के मुकदमों की चर्चा विभिन्न प्रकार के मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और राजनीतिक शोषणों का सामना करना पड़ता है। भारत में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी बौद्ध सभी लोगों के अलग अलग विवाह के नियम हैं। आदिवासियों और ग्रामीण और नगर महानगर में विविधता है।
मुख्य वक्ता के रूप में डायमंड हार्बर विश्विद्यालय और शिक्षण प्रशिक्षण से संबद्ध कुलपति प्रो सोमा बंदोपाध्याय ने अपने बहुमूल्य विचार रखते हुए कहा कि विवाह का अर्थ अर्थात विशेष रूप से निर्वाह करना है। विवाह के संदर्भ में अपनी कविता हवाओं में बादलों में /… इस मन ने उस मन को दी सम्मति सुनाई। भारत में विवाह एक पवित्र बंधन है वहीं पश्चिम में तीन अंगूठियाँ महत्वपूर्ण होती हैं जो सगाई शादी और पीड़ा यात्राओं से संबधित है। विवाह मानवीय पहले प्रवृत्तियों का परिशोधन और परिवर्धन है।
कार्यक्रम का संचालन किया राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन महिला इकाई कोलकाता की अध्यक्ष डॉ वसुंधरा मिश्र ने जो भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज की हिंदी प्रवक्ता हैं। संचालन के दौरान कई प्रश्न उठाए गए। वर्तमान समय में विवाह के बदलते स्वरूप में विवाह की कानूनी अधिकतम आयु सीमा लड़की की 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष हो गई है। शहरों में कॅरियर बनाने में युवा युवक अधिक ध्यान दे रहे हैं जिससे उनके सामाजिक जीवन में रिक्तता आई है। एक दूसरे को समय नहीं दे पाते हैं और बच्चों पर भी असर पड़ता है। माता-पिता और युवा पीढ़ी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रश्नोत्तर सत्र का संचालन किया डॉ सुषमा हंस ने। डॉ मंजूरानी गुप्ता, सुषमा त्रिपाठी, कविता कोठारी, सीमा भावसिंहका आदि कई सदस्यों ने प्रश्न पूछे जिनका उत्तर नम्रता चढ्ढा ने दिए।
राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव और नई पीढ़ी के संस्थापक शिवेंद्र प्रकाश द्विवेदी ने नयी पीढ़ी और राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन महिला इकाई की सभी सदस्याओं और प्रमुख अतिथि वक्ताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि आधुनिक समाज के बदलते हुए विभिन्न विषयों पर चर्चा करना हमारा कर्तव्य और धर्म है। संवाद होने से समस्याओं का समाधान मिलता है। यह कार्यक्रम जूम पर ऑनलाइन हुआ। इस कार्यक्रम का संचालन और संयोजन डॉ वसुंधरा मिश्र ने किया ।

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