शनि शिंगणापुर में 400 साल की परंपरा खत्म मगर लड़ाई अब भी बाकी है

महिलाओं को देवी माना जाता है। शक्ति का स्वरूप माना जाता है और मातृरूप की आराधना की जाती है मगर देवियों को पूजने वाले इस देश में एक आम औरत इस कदर अपवित्र मान ली जाती है कि ईश्वर के मंदिर में उसका प्रवेश पुरोधाओं को गवारा नहीं होता। जिस औरत से सृष्टि का विस्तार होता है, उसके प्राकृतिक हालात और शारीरिक परिवर्तन से पुरूष प्रधान समाज इतना डर जाता है कि अपना एकाधिकार वह मंदिरों पर जमाता है। मंदिरों में स्त्रियाँ उसे देवदाासी के रूप में मंजूर हैं मगर वह समानता की बात करे तो परम्परा के खत्म होने का डर समाज के एक वर्ग को सताता हैै। तृप्ति देसाई की यह जीत बड़ी जीत है मगर इसे आखिरी नहीं होने देना है। आखिर क्या वजह है कि किसी धर्म की प्रमुख कभी महिला नहीं होती। धर्म आखिर महिलाओं को समान अधिकार देने से इतना कतराता है तो इसके पीछे कहीं न कहीं आधिपत्य टूटने की भावना है और यह सभी धर्मों के साथ है। हाल ही में नवरात्र के पहले ही दिन शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के हक में फैसला हुआ। मंदिर ट्रस्ट ने 400 साल से चली आ रही परंपरा खत्म कर दी। एलान हुआ कि अब महिलाएं भी चबूतरे पर चढ़कर शनि भगवान की पूजा कर सकेंगी और उन्हें तेल चढ़ा सकेंगी। इसे भूमाता ब्रिगेड की लीडर तृप्ति देसाई की जीत कहा जा रहा है मगर इस बदलाव का असर देश के और भी मंदिरों में दिखना बाकी है।

। त्र्यम्बकेश्वर से सबरीमाला तक महिलाओं को अंदर जाने की अनुमति नहीं…

1# त्र्यम्बकेश्वर मंदिर (नासिक)

यहां मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं थी। भूमाता ब्रिगेड ने हाल ही में यहां भी बैन तोड़ने की कोशिश की थी।

– बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के बाद मंदिर अथॉरिटी ने गर्भगृह में पुरुषों की एंट्री पर भी बैन लगा दिया।

– शनि शिंगणापुर में अपनी कामयाबी के बाद तृप्ति देसाई अब इस मंदिर में भी महिलाओं को पूजा का हक दिलाने की लड़ाई तेज करेंगी।

2# सबरीमाला मंदिर (केरल)

– केरल के सबसे पुराने और भव्य मंदिरों में शामिल सबरीमाला श्री अयप्पा मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं की एंट्री पर बैन है। ये प्रथा एक हजार साल से चली आ रही है।

– कुछ समय पहले मंदिर बोर्ड के चीफ ने एक बयान में कहा था कि जब तक महिलाओं की शुद्धता (पीरियड्स) की जांच करने वाली कोई मशीन नहीं बन जाती है, मंदिर में महिलाओं को एंट्री की इजाजत नहीं दी जा सकती।

– इससे जुड़ा एक मामला सुप्रीम कोर्ट में है।

3# हाजी अली दरगाह (मुंबई)

– हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह में महिलाओं की एंट्री बैन है। 2011 तक यहां महिला जायरीनों को बेरोकटोक जाने दिया जाता था।

– हाजी अली ट्रस्ट का तर्क है कि ये एक पुरुष संत की मजार है, इसलिए वहां महिलाओं के जाने पर रोक लगाई गई है।

– इस बैन खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में केस चल रहा है।

– 9 फरवरी, 2016 को हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है। आखिरी फैसले का इंतजार है।

4#पद्मनाभस्वामी मंदिर (केरल)

– दुनिया के सबसे अमीर पद्मनाभस्वामी मंदिर में महिलाएं बाहर से पूजा कर सकती हैं। पर गर्भगृह में इनका प्रवेश मना है।

– ऐसी मान्यता है कि यदि महिलाएं यहां जाती हैं, तो खजाने पर बुरी नजर लग जाती है। इससे भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं।

यहां भी महिलाओं के अंदर जाने पर रोक

– म्हसकोबा मंदिर (पुणे) :यहां महिलाओं को नवरात्र जैसे खास दिनों पर ही एंट्री दी जाती है।
– घाटी देवी और सोला शिवलिंग (सतारा) –इस मंदिर में भी महिलाओं को पूजा करने की अनुमति नहीं है।
– वैबातवाड़ी मारुति (बीड़)-परंपरा के मुताबिक यहां भी महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है।

कामाख्या मंदिर (असम)-यहां पीरियड्स के दौरान महिलाओं की मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी है।

– राजस्थान में पुष्कर के कार्तिकेय मंदिर, रणकपुर के जैन मंदिरमें भी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है।

– दिल्ली में निजामुद्दीन दरगाहके अंदर के एरिया में भी महिलाएं नहीं जा सकती हैं।

शिंगणापुर में शुक्रवार को ऐसे चला घटनाक्रम…

शुक्रवार को शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने एेतिहासिक फैसला लिया। हालांकि, इससे पहले रोक के बावजूद करीब 250 पुरुषों ने चबूतरे पर चढ़कर शनि की शिला पर तेल और जल चढ़ाया था। यह सारा घटनाक्रम शुक्रवार को महज ढाई घंटे के अंदर हुआ।

1# सुबह 10.30 बजे : पुरुषों ने की पूजा

– महिलाओं को पूजा का हक दिलाने का विवाद बढ़ने के बाद मंदिर ट्रस्ट ने शनि चबूतरे तक पुरुषों की भी एंट्री बंद कर दी थी। जबकि गुड़ी पड़वा पर यहां शिला पूजन का रिवाज रहा है।

– एंट्री बैन होने के विरोध में सुबह करीब 250 पुरुषों ने बैरिकेड और सिक्युरिटी को तोड़ते हुए चबूतरे तक पहुंचे।

– इन पुरुषों ने यहां तेल और प्रवर संगम स्थल से गोदावरी और मूले नदी से लाया गया जल चढ़ाया।

2# दोपहर 12 बजे : तृप्ति देसाई ने कहा- हम भी मंदिर जाएंगे

– दरअसल, बॉम्बे हाईकाेर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मंदिरों में पूजा बुनियादी हक है। इससे महिलाओं को नहीं रोका जा सकता।

– इसी फैसले के बाद मांग उठी थी कि जब पुरुषों को पूजा की इजाजत है, तो महिलाओं को क्यों न हो?

– विवाद से बचने के लिए शनि शिंगणापुर और बाद में नासिक त्र्यंबकेश्वर मंदिर ट्रस्ट ने पुरुषों की भी गर्भगृह तक एंट्री रोक दी थी।

– जब शुक्रवार सुबह पुरुषों ने बैरिकेड तोड़कर पूजा की तो महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रहीं भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने कहा कि हम भी मंदिर में जाकर पूजन करेंगे। जब पुरुषों को इजाजत दी गई तो महिलाओं को भी हक मिलना चाहिए, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने ही ऐसा कहा है।

3# दोपहर 1 बजे : मंदिर ट्रस्ट का ऐतिहासिक फैसला

– ढाई घंटे बाद मंदिर ट्रस्ट ने महिलाओं को भी शनि शिंगणापुर के गर्भगृह यानी चबूतरे पर जाकर तेल चढ़ाने और पूजा करने की इजाजत देने का फैसला किया।

– शनि मंदिर के ट्रस्टी सयाराम बनकर ने कहा कि ट्रस्टियों की आज मीटिंग हुई। इसमें फैसला किया गया है कि महिलाओं-पुरुषों की एंट्री पर रोक नहीं रहेगी। ऐसा हमने हाईकोर्ट का आदेश मानने के लिए किया है। हम भूमाता ब्रिगेड की लीडर तृप्ति देसाई का भी स्वागत करेंगे।
– वहीं, मंदिर ट्रस्ट के प्रवक्ता हरिदास गायवाले ने कहा कि अब किसी के साथ मंदिर परिसर में भेदभाव नहीं होगा।

4# शाम 5:15 बजे : महिलाओं ने पहली बार की पूजा

– मंदिर ट्रस्ट के फैसले के बाद पहली बार महिलाएं मंदिर के गर्भगृह यानी चबूतरे पर पहुंचीं।

– इन महिलाओं ने यहां पूजा की और शनि देव को तेल चढ़ाया।

– शाम करीब 7 बजे तृप्ति देसाई ने भी मंदिर में जाकर पूजा की। उन्हें मंदिर के ट्रस्टियों ने पूजा करने के लिए आमंत्रित किया था।

 

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