सदियों पहले देवी कुमारी ऐसे आयीं कन्या कुमारी  

कहते हैं कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है। कश्मीर भारत माता का मस्तिष्क है तो कन्याकुमारी चरण। कन्याकुमारी, तमिलनाडु राज्य का एक प्राचीन शहर है। इस शहर का नाम कन्याकुमारी ही क्यों हैं? इस नाम के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है।

किवदंती है बहुत समय पहले बानासुरन नाम का दैत्य हुआ था। उसने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु कुंवारी कन्या के अलावा किसी से न हो। शिव ने उसे मनोवांछित वरदान दे दिया।

उसी कालक्रम में भारत में ही एक राजा हुए जिनका नाम था भरत। राजा भरत की आठ पुत्रियां और एक पुत्र था। राजा भरत ने अपना साम्राज्य 9 बराबर हिस्सों में बांट दिया। दक्षिण का हिस्सा जहां वर्तमान में कन्या कुमारी है राजा भरत की पुत्री कुमारी को मिला। मान्यता है कि कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता है।

देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। देवी कुमारी ने उस दौर में दक्षिण में कुशलतापूर्वक राज्य किया। कुमारी की हार्दिक इच्छा थी कि उसका विवाह भगवान शिव से हो, जब ये बात शिव को पता चली तो वह भी विवाह के लिए राजी हो गए।

लेकिन देवर्षि नारद चाहते थे कि बानासुरन का अंत कुमारी के हाथों ही हो, इस विघ्न के चलते शिव और कुमारी का विवाह नहीं हो सका। इस दौरान जी बानासुरन को कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो वो सुनकर ही मोहित हो गया, उसने कुमारी को विवाह का प्रस्ताव पहुंचाया।

कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा दे तो वह बानासुरन से विवाह कर लेगीं। दोनों में युद्ध हुआ और बानासुरन मारा गया। इस तरह देवी कुमारी ने उस दैत्य को मारकर वहां रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय कर दिया।

इसलिए दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्या कुमारी कहा गया। मान्यता है कि जब शिव और कुमारी का विवाह अधूरा रह गया तो वहां जो भी विवाह के लिए तैयारियां की गईं थी वो सब रेत में बदल गईं। और इस तरह आधुनिक कन्याकुमारी शहर की नींव रखी गई।

यहां और भी हैं मंदिर

कुमारी मंदिर: तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं। प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकड़ बन गए।

शंकराचार्य मंदिर: कन्याकुमारी में तीन समुद्रों-बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन होता है। इसलिए इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। तट पर कांचीपुरम की श्री कांची कामकोटि पीठम का एक द्वार और शंकराचार्य का एक छोटा-सा मंदिर है। यहीं पर 12 स्तंभों वाला एक मंडप भी है जहां बैठ कर यात्री धार्मिक कर्मकांड करते हैं।

तिरुवल्लुवर प्रतिमा: सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। यह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।

नागराज मंदिर : यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर चीन की वास्तुशैली के बौद्ध विहार जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहां नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं।

कन्याकुमारी का इतिहास: कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।

यह स्थान एक खाड़ी, एक सागर और एक महासागर का मिलन बिंदु है।यहां आकर प्रकृति के अनंत स्वरूप के दर्शन होते हैं। इस पवित्र स्थान को ‘एलेक्जेंड्रिया ऑफ़ ईस्ट’ की नाम से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है

 

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