साहित्यिकी संस्था द्वारा वरिष्ठ सदस्याओं के साहित्यिक योगदान एवं समर्पण पर गोष्ठी

कोलकाता । प्रसिद्ध संस्था साहित्यिकी ने अपनी दो वरिष्ठ सदस्याओं डॉ आशा जायसवाल और सरोजिनी शाह के व्यक्तित्व और अनुभवों को केंद्र रख मासिक गोष्ठी का आयोजन किया। सचिव मंजुरानी गुप्ता ने ज़ूम मंच पर उपस्थित सदस्याओं एवं अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया। साहित्यिकी की संस्थापिका डॉ सुकीर्ति गुप्ता की स्मृति को नमन करते हुए रेवा जाजोदिया को संचालन के लिए आमंत्रित किया।
रेवा जाजोदिया ने साहित्यिकी संस्था की वरिष्ठ सदस्याओं डॉ आशा जयसवाल एवं सरोजिनी शाह के जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों को उजागर करते हुए बताया कि दोनों ने ही अपने जीवन के लगभग आठ दशकों तक की यात्रा की है जिनमें संघर्ष, सुख – दुख, खट्टे – मीठे अनुभव दोनों रहे।
प्रथम वक्तव्य के लिए संस्था की सदस्य प्रसिद्ध व्यंग्यकार नुपूर अशोक को आमंत्रित किया। आशा जी के व्यक्तित्व और उनके साहित्यिक अवदान की चर्चा करते हुए नुपूर अशोक ने कहा कि एक शिक्षिका के रूप में इस उम्र में भी वे अपना कर्तव्य बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा लिए कर रही हैं। पुरानी पीढ़ी के लिए जीवन की चुनौतियाँ अलग तरह की होती थीं। अनुशासन, आध्यात्मिक झुकाव, चिन्मय मिशन से जुड़ाव , गीता और उपनिषद की कक्षाएँ लेना आज भी उनके जीवन का अंग है। चेहरे पर हमेशा मुस्कान उनकी ऊर्जा को दर्शाता है। डॉ आशा जायसवाल ने संस्था को धन्यवाद दिया और कहा कि संस्था की स्थापना के समय से ही जुड़ी हूँ और गुरू परंपरा पर विश्वास करती हूँ। जीवन अनुभवों की श्रृंखला है । अपने दृष्टिकोण को बदलने से विचारों में नयापन आता है।
द्वितीय वरिष्ठ सदस्या सरोजिनी शाह का परिचय देते हुए कवयित्री और उद्घोषिका सबिता पोद्दार ने 30 मार्च 1942 में बुलंदशहर में जन्मी सरोजिनी शाह के जीवन का परिचय दिया। जीवंतता, अतिथि परायण और सरलता से पूर्ण उनका व्यक्तित्व रहा । मारवाड़ी परिवार में पली सरोजिनी शाह परिवार में रहकर परिवार की परंपराओं को साधक की तरह अपनाती गई जो उनको एक महत्वपूर्ण इंसान बनाता है।एम ए डिग्री प्राप्त करते ही उनका विवाह हो गया था । विवाह के पश्चात किस तरह पारिवारिक जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ा और रिश्तों को निभाया, उस पर अपनी बातें रखी। साहित्यिकी से जुड़ कर उन्होंने अपनी साहित्यिक रुचियों को आगे बढ़ाया।
सरोजिनी शाह ने अपने जीवन के कठिन संघर्षों को साझा किया। स्त्रियों के स्वावलंबन और अस्मिता को उन्होंने अपने वक्तव्य में विशेष रूप से रेखांकित किया।
संवाद सत्र में गीता दूबे ने ममतामयी स्वभाव, अहंकार से परे, आडंबरहीन हौसलाअफ़जाई करने वाली आशा जी के कई अनुकरणीय विशेषताओं पर अपने विचार व्यक्त किए । रेणु गौरिसरिया ने रांची में एक साथ गुजारे समय को याद किया।उषा श्रॉफ़, उमा झुनझुनवाला के अतिरिक्त सारिका बंसल, ऋचा अहलूवालिया, शालिनी केडिया आदि ने अपने अंतरंग प्रेरक प्रसंगों को साझा किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुसुम जैन ने कहा कि संस्था एक परिवार की तरह है और हम सब का प्यार एक दूसरे की ताकत है, हमारे आपसी संबंध रक्त संबंधों से इतर होते हुए भी हृदय से जुड़े हुए हैं।
संचालन करते हुए रेवा जाजोदिया ने दोनों ही वरिष्ठ सदस्याओं को साहित्य प्रेमी, साधक, रिश्तों को साधने वाली बताया।
ज़ूम ऑनलाइन हुई इस साहित्य गोष्ठी में साहित्यिकी की सदस्याओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। रिपोर्ट डॉ वसुंधरा मिश्र ने दी ।

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