साहित्य कला से अलग नहीं है बल्कि वह भी कला है

प्रशस्ति तिवारी एक कुशल नृत्यांगना हैं। कत्थक की आम परम्परा से अलग इन्होंने साहित्य को चुना। कबीर के पदों पर उनका कत्थक रोमांचित कर देता है। प्रशस्ति नृत्य कार्यशालाएँ भी करवाती हैं और प्रशिक्षण भी देती हैं। हाल ही में 25वें हिन्दी मेले में अपनी प्रस्तुति देने आयी प्रशस्ति से शुभजिता की मुलाकात हुई, पेश हैं प्रमुख अंश –

परम्परागत चीजों से हटकर कुछ नया करना चाहती थी
– बनारस से हूँ। 3 साल की उम्र से कत्थक सीख रही हूँ। बीएचयू से सीखा। 2012 में कबीर के पदों पर पहली बार प्रस्तुति कबीर चौरा में दी। कबीर को इसलिए चुना क्योंकि मैं कत्थक की गुरु – शिष्य परम्पराग की परम्परागत चीजों से हटकर कुछ नया करना चाहती थी। यही कारण है कि मैंने कबीर को चुना। पहली प्रस्तुति बेहद यादगार रही क्योंकि जब जब मैंने इसे किया तो यह एक तरह की क्रांति थी। लोग अपनी छतों से देख रहे थे क्योंकि एक लड़की प्रस्तुति दे रही थी और वह भी परम्परागत चीजों से अलग हटकर कबीर के पदों को प्रस्तुत कर रही थी।
मैं एक कलाकार हूँ और कबीर मेरे लिए अपनी बात कहने का तरीका हैं। बीएचयू में जब आयी तो 12 बांग्लाभाषी विद्यार्थियों के बीच अकेली हिन्दीभाषी छात्रा थी। यह सही है कि हिन्दीभाषी प्रदेशों में लड़कियों के लिए समस्या रहती है मगर आज स्थिति बदल चुकी है। मेरे घर में वातावरण कला और साहित्य का रहा है इसलिए मुझे दिक्कत नहीं हुई पर मैं जानती हूँ कि ऐसी लड़कियाँ हैं जिनके लिए आगे बढ़ना मुश्किल है।

निर्गुण किया तो सवाल उठे
शुरुआती दिनों में काफी चीजें झेलनी पड़ी। शुरुआत में रोड शो करती थी। निर्गुण किया तो सवाल उठे। मैं समाज में अपनी बात कहना चाहती थी मगर आगे बढ़ी।

आर्थिक जरूरतमंद लड़कियों के साथ काम कर रही हूँ
मैं नृत्य कार्यशाला करवाती हूँ। प्रशिक्षण भी देती हूँ। कबीर करना और उस पर निर्गुण करना मेरे लिए कठिन था। मैंने जयशंकर प्रसाद की कविताओं के साथ रश्मिरथी के कर्ण प्रसंग पर काम किया है। आर्थिक जरूरतमंद लड़कियों को लेकर समूह बनाया, प्रशिक्षित किया और आज वे आत्मनिर्भर हैं और दूसरों को भी सिखा रही हैं।

जो साहित्य को पढ़ते हैं, वे कला को भी समझते हैं
मुझे लगता है कि साहित्य कला से अलग नहीं है बल्कि वह भी कला है। जो साहित्य को पढ़ते हैं, वे कला को भी समझते हैं। मुझे याद है कि 2009 में जब मैं पहली बार बीएचयू में मंच पर गयी तो वहाँ सभागार में काशीनाथ सिंह थे। उस दौरान बनारस कविता पर काम कर रही थी, मंच पर जाकर एकदम ब्लैंक हो गयी थी मगर इसके बाद मैंने फिर तैयारी की और सफल प्रस्तुति भी दी।

साहित्य को देखें और अनुभव करें
कोलकाता और हिन्दी मेला आकर बहुत अच्छा लगा। यहाँ 12 साल के बच्चों से कविता सुनना और उनका मंच तक आना बड़ी उपलब्धि है। हिन्दी मेले तक सन्देश लोगों तक जा रहा है और 25 साल तक निरन्तर चलना एक बड़ी बात है। तकनीक से साहित्य को लड़ना है। मेरा सन्देश है कि साहित्य को देखें और अनुभव करें।

शुभजिता

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