स्‍कूल जहां नहीं लगती है फीस, उलटा बच्‍चों को मिलता है स्‍टाइपेंड

नयी दिल्‍ली । अभिभावकों की एक बड़ी चिंता बच्‍चों की पढ़ाई होती है। इसके लिए वे बच्‍चों को अच्‍छे से अच्‍छे स्‍कूल में दाखिला दिलाते हैं। कई तो अपना पेट काटकर अपने बच्‍चों का उज्‍ज्‍वल भविष्‍य बनाने की कोशिश करते हैं। हालांकि, प्राइवेट स्‍कूलों की मनमानी फीस के कारण कई बार पैरेंट्स को अपने मन को मसोस कर रह जाना पड़ता है। देश में ज्‍यादातर प्राइवेट स्‍कूलों की यही कहानी है। इनकी अनाप-शनाप फीस अभ‍िभावकों को रुला देती है। यह और बात है कि एक ऐसा भी स्‍कूल है जहां फीस नहीं ली जाती है। अलबत्‍ता, बच्‍चों को स्‍टाइपेंड दिया जाता है। जरूरतमंदों की जिंदगी बदलने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई है। इसे चलाने वाले हैं जोहो कॉरपोरेशन के सीईओ और संस्‍थापक श्रीधर वेम्‍बु। उन्‍हें 2021 में पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया था। वह भारत के 55वें सबसे अमीर शख्‍स हैं।
वेम्‍बु का जन्‍म 1968 में तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हुआ था। परिवार मिडिल क्‍लास था। 1989 में उन्‍होंने मद्रास के इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (IIT) से इलेक्‍ट्र‍िकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। फिर न्‍यूजर्सी में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से एमएस और पीएचडी की डिग्री हासिल की। कैलिफोर्निया में वायरलेस इंजीनियर के तौर पर उन्‍होंने क्‍वालकॉम के साथ अपने करियर की शुरुआत की। फिर 1996 में वेम्‍बु ने अपने भाइयों के साथ एडवेंटनेट नाम की सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट फर्म शुरू की। 2009 में इसी कंपनी का नाम बदलकर जोहो कॉरपोरेशन कर दिया गया। 2019 में वेम्‍बु स्‍थायी रूप से भारत लौट आए। तमिलनाडु में तेनकासी जिले के ग्रामीण इलाके में जोहो ने अपने दफ्तर बनाए। वेम्‍बु को सॉफ्टवेयर और प्रोडक्‍ट डेवलपमेंट को शहरों से ग्रामीण इलाकों में ले जाने के लिए जाना जाता है। नहीं लगती फीस, म‍िलता है स्‍टाइपेंड
2020 में वेम्‍बु श्रीधर ने रूरल स्‍कूल स्‍टार्टअप का ऐलान किया। इसका मकसद फ्री प्राइमरी एजुकेशन देना है। इसके पहले 2005 में ही श्रीधर वेम्‍बु ने जोहो स्‍कूल की नींव डाल दी थी। 2004 में जोहो यूनिवर्सिटी शुरू करने के एक साल बाद इसकी शुरुआत हुई थी। जोहो स्‍कूल में कोई फीस नहीं ली जाती है। बजाय इसके छात्रों को अलग-अलग तरह की स्किल्‍स सिखाई जाती हैं। स्‍टूडेंट्स को दो साल के कोर्स के ल‍िए 10,000 रुपये स्‍टाइपेंड दिया जाता है। जोहो कॉरपोरेशन में काम करने वाले हजारों कर्मचारियों में बड़ी संख्‍या में इस स्‍कूल के होते हैं। कभी दो बच्‍चों से शुरू हुआ था स्‍कूल
जोहो स्‍कूल छह बच्‍चों और दो टीचरों के साथ शुरू हुआ था। अब इन स्‍टूडेंट की संख्‍या बढ़कर 800 से ज्‍यादा हो चुकी है। जोहो स्‍कूल के प्रेसीडेंट राजेंद्रन दंडपाणी का बेटा भी इसी स्‍कूल में पढ़ा। फिर उसी कंपनी में कर्मचारी बन गया। राजेंद्रन बताते हैं कि जोहो में 90 फीसदी स्‍टूडेंट तमिलनाडु के होते हैं। जोहो इंस्‍टीट्यूट तेनकासी में वहीं है जहां जोहो के दफ्तर बने हैं। इसके कारण स्‍टूडेंट ऑफिस के माहौल से जल्‍द ही एक्‍सपोज्‍ड हो जाते हैं। जोहो के स्‍टूडेंट 21 साल की छोटी उम्र से काम पर लग जाते हैं। जोहो स्‍कूल में पढ़ाई ग्रेड, नंबरों या स्‍कोर पर नहीं, बल्कि योग्‍यता पर निर्भर करती है। यहीं से टैलेंट खोजा जाता है।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

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