हमें हर हाल में इस खूबसूरत दुनिया को बंजर बनने से रोकना है

प्रो. गीता दूबे

चारों ओर लाशों के ढेर हैं, कब्रिस्तानों और‌ श्मसान  घाटों के आगे कतारों में लोग खड़े हैं। हमारे आदरणीय नेता गण चुनावों की रैलियों में व्यस्त हैं। शेरों की तरह दहाड़ रहे हैं और‌ आम जनता के कलेजे खौफ से काँप रहे हैं। ऐसे भयावह वातावरण में कैसे आपका हाल पूछूं, सखियों। कैसे आपको राम -राम और प्रणाम कहूँ। आप भी जानती हैं कि शोक के समय प्रणाम पाती बंद हो जाती है। लोग आपस में दुआ -सलाम नहीं करते। आज तो घर- घर में शोक का गहरा साया छाया हुआ है। लोग डरते -डरते एक दूसरे का हाल पूछते हैं। कई बार हाल पूछते भी डर लगता है कि न जाने कहाँ से कौन सा दुसंवाद सुनने को मिल जाए। 

सखियों, इस समय पूरा देश हैरान परेशान है। हर घड़ी सीने में धुकधुकी लगी रहती है। नींद नहीं आती है और नींद आ भी जाए तो खौफनाक सपनों से सामना होता है। हर ओर हाय- हाय करते, रोते चीखते लोग दिखाई देते हैं। किसी हाल नींद आ जाए तो आंखें खोलते डर लगता है कि न जाने कौन सा बुरा समाचार हमारे जागने की प्रतीक्षा में हो। 

ऐसा नहीं सखियों कि हमारा देश और पूरी दुनिया पहली बार किसी महामारी का सामना कर रही है। इसके पहले भी महामारियों के खौफनाक आक्रमणों को हम झेल चुके हैं और विध्वंस के गवाह भी रहे हैं। लेकिन फर्क सिर्फ इतना ही है कि वह मंजर हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है और आज हम इस महामारी के घावों को अपने सीने पर झेल रहे हैं। अपनी आँखों के सामने अपने लोगों को दवा, इंजेक्शन, ऑक्सीजन और अस्पतालों के अभाव में दम तोड़ते देख रहे हैं। और ठीक इस भयावह समय में जब लोगों को लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए कुछ अवसरवादी बेहया लोग हर चीज का व्यापार करने में लगे हुए हैं। दवाइयों की जमाखोरी और कालाबाजारी हो रही है, वह भी खुलेआम। लगता है, सरकारी अमले और कानून के रक्षक एक लंबी छुट्टी पर हैं और उनके कानों तक जनता की चीख-पुकार नहीं पहुँचती और अगर पहुँच भी जाती है तो वे उसे बड़ी बेहयाई से नजरंदाज कर देते हैं। कहीं तोहमतों का बाजार गर्म है। सियासतदानों के बीच एक दूसरे पर कीचड़ उछालकर जनता को भरमाने और अपना स्वार्थ साधने का घृणित खेल चल रहा है। कभी- कभी लगता है कि जनता की जान क्या इतनी सस्ती हो गई है कि उसकी याद नेताओं को सिर्फ चुनावों के समय आती है, बाकी वह मरे या जीए इससे किसी को कोई मतलब नहीं। देश के मौजूदा हालात को देखते हुए ‌शायर दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां अनायास दिमाग में कौंध जाती हैं-

“इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात

अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।”

यह स्थिति किसी शहर की नहीं पूरे देश की है। इंसानियत की खिड़कियों के दरवाजे मजबूती से बंद हैं और सियासतदानों को सिर्फ अपनी -अपनी पड़ी है। ऐसे में आम जनता का हैरान परेशान होना लाजमी है।

सखियों, रोम के बारे में एक कहानी कही जाती है कि “जब रोम जल रहा था तो वहाँ का सम्राट नीरो बाँसुरी बजा रहा था।” लेकिन हमने इस कहानी से कुछ नहीं सीखा। हम तो इतिहास इसलिए पढ़ते हैं ताकि परीक्षा पास कर सकें। उससे सीख लेने की जहमत हम नहीं उठाते इसीलिए आज तकरीबन वही स्थिति हमारे देश की भी है। सारे देश में तबाही का आलम है। कुछ लोग करोना के कारण दम तोड़ रहे रहे हैं तो कुछ दवाओं की कमी से तो कुछ दहशत के कारण लेकिन हमारे देश में लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है अर्थात चुनाव हो रहे हैं। चूंकि कहावत ही है कि “इश्क और जंग में सब कुछ जायज है” तो हमारे देश में चुनाव और जंग एक ही समझे जाते हैं और उसमें विजय हासिल करने के‌ लिए हर मुमकिन कोशिश की जाती है। यह जंग तो कोई न कोई जीत ही लेगा लेकिन मानवता के इतिहास में कितनों के नाम नीरो की शक्ल में दर्ज होंगे, यह तो थोड़ी भी समझदारी रखनेवाला आसानी से समझ सकता है। 

सखियों, आज के हालात को देखते हुए इतना ही कह सकती हूँ-

“हर ओर तबाही का मंजर तो देखिए

अवसरवादियों के हाथ में खंजर तो देखिए

लहूलुहान हो रही है इंसानियत भरे बाजार

नेताओं का हर हाल में कायम रहे बस राज 

लाशों के कारोबारियों की सूरत तो देखिए

इन नकली रहनुमाओं की गैरत तो देखिए।

 शर्मोहया सब बेचकर आए हैं नामुराद

 सुनेंगे भला कैसे मजलूमों की आवाज़,

आहों औ कराहों पर धरते नहीं हैं कान

उजले दिलों में फैलता बंजर तो देखिए।।”

सखियों, आज बस इतना ही कहूंगी कि अपना, अपने परिवार वालों का ध्यान तो रखिए ही, अपने और पराये का फर्क भुलाकर जितना भी हो पाए हर किसी की मदद करने की कोशिश कीजिए। मानवता को जीवित रखने की जिम्मेदारी अब आम लोगों के हाथ में है और हमें हर हाल में इस खूबसूरत दुनिया को बंजर बनने से रोकना है। हिम्मत बनाए रखिए और इस आपदा से लड़ने और इससे जीतने का हौसला कायम रखिए। हमने बहुत सी आपदाओं पर विजय हासिल की है। आज नहीं तो कल, यह जंग हम जीत ही लेंगे। बस इंसानियत पर भरोसा कायम रखिए। आज नहीं तो कल इन लाशों के कारोबारियों के तख्तोताज छिन जाएंगे या छीन लिए जाएंगे। उम्मीद है कि अगले हफ्ते तक हालात में कुछ बदलाव जरूर आएगा। तब तक अपना और बाकी सब का ध्यान रखिए।

 

priti- shaw